विकासशील देशों के लिए केंन्ज के सिद्धांत की प्रासंगिकता एवं सार्थकता
विकासशील देशों की बेरोजगारी चक्रीय बेरोजगारी नहीं होती है विकासशील देशों में रोजगार के कम अवसरों के उपलब्ध होने का कारण समस्त समर्थ मांग के घाट जाना नहीं। उनकी बेरोजगारी तो चिरकालीन बेरोजगारी है भारत जैसे श्रम अधिक्य विकासशील देश में बेरोजगारी एक पुरानी बीमारी के समान है दूसरा मुख्य अंतर यह है कि केंन्ज ने अपना सिद्धांत विकसित देशों को सम्मुख रखकर प्रतिपादित किया इन देशों में मुख्य समस्या यह होती है कि इनमें सामयिक उतार चढ़ाव अर्थात व्यापार चक्र को कैसे दूर किया जाए और किस प्रकार अर्थव्यवस्था में स्थिरता लाई जाए विकसित देशों की मुख्य समस्या उनकी आर्थिक अस्थिरता है इसके विपरीत विकासशील देशों की मुख्य समस्या यह नहीं उनकी तो सबसे बड़ी समस्या यह है कि बिना मुद्रास्फीति के आर्थिक विकास कैसे किया जाए अर्थात वह अपने आय तथा रोजगार को कैसे द्रुतगति से बढ़ाएं ना कि यह की आय तथा रोजगार में होने वाले अल्पकालीन उतार चढ़ाव को कैसे रोका जाए विकासशील देशों में केंन्ज ने अनेक धारणाएं प्रस्तुत की है कि उपभोग प्रवृत्ति निवेश फलन तथा पूंजी की सीमांत कुशलता नकदी या तरलता अधिमान की धारणाएं तो आधारभूत है जो सभी देशों पर चाहे वह विकसित हो अथवा कम विकसित लागू होती हैं क्योंकि यह धारणाएं मानव की मनोवैज्ञानिक प्रवृत्तियों पर आधारित है हमारी आपत्ति तो केन्ज के संपूर्ण सिद्धांत अथवा मॉडल के विषय में है कि यह विकासशील देशों पर लागू नहीं होता ना कि केंन्ज की विभिन्न धारणाओं के संबंध में आर्थिक विश्लेषण के उपकरण है जिन्हें सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं के विषय में प्रयोग किया जा सकता है भारत जैसे अल्प विकसित देशों पर लागू नहीं होता उनका विचार था कि अल्प विकसित देशों की समस्याएं तथा उनके उपचार की नीतियां विकसित देशों की समस्याओं से भिन्न है विशेषकर मंदी तथा उससे उत्पन्न अनैच्छिक बेरोजगारी की समस्या से जिसकी व्याख्या तथा उसके उपचार के लिए केंन्ज ने अपना सिद्धांत प्रतिपादित किया था अब हम निम्न विश्लेषण में पहले इस केंन्ज के सिद्धांत का अल्प विकसित देशों में प्रासंगिक न होने के परंपरागत विचार की व्याख्या करेंगे भारतीय अन्य विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में केंन्ज अनेक सिद्धांत तथा धारणाएं लागू होती है 1929 से 33 मैं घटित महामंदी का कारण मांग की कमी बताया गया इस महामंदी से विकसित पूंजीवादी देशों में सकल राष्ट्रीय उत्पाद तथा रोजगार की मात्रा में भारी कमी हुई परिणाम स्वरूप इस मंदी के कारण बड़ी मात्रा में अनैच्छिक बेरोजगारी उत्पन्न हो गई मांग में कमी हो जाने का कारण व्यावसायिक फर्मो की निवेश पर लाभ की प्रत्याशी दर घट गई थी जिससे निवेश में भारी गिरावट हुई उसके अनुसार गुणक कार्यशील होने से निवेश में गिरावट के कई गुना अधिक राष्ट्रीय आय तथा रोजगार की मात्रा में कमी हुई इसके विरुद्ध अल्प विकसित देशों में पाई जाने वाली बेरोजगारी तथा गरीबी समस्त मांग में कमी के कारण नहीं है बल्कि यह मुख्यतः जनसंख्या की तुलना में पूंजी स्टाक की कमी के कारण उत्पन्न हुई है रहते हो इन वरिष्ठ भारतीय अर्थशास्त्रियों के मत अनुसार अल्प विकसित देशों में व्यापक भीषण बेरोजगारी तथा गरीबी को केंन्ज द्वारा सुझाई गई घाटे की वित्त व्यवस्था द्वारा समस्त मांग में वृद्धि करना तो मुद्रास्फीति उत्पन्न कर देगा बेरोजगारी तथा गरीबी दूर नहीं करेगा यह विचार प्रकट करते हुए डॉक्टर राव ने लिखा कि अल्प विकसित देशों में बेरोजगारी तथा अल्प रोजगारी को हटाने के लिए केंन्ज द्वारा प्रस्तुत नीति उपायों पर अमर करना इन देशों को मानो मुद्रास्फीति के विकराल मुंह में धकेल देना है इन प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों के मत अनुसार अल्प विकसित देशों में बेरोजगारी तथा गरीबों को दूर करने के प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों में द्वारा सुझाई गई नीति अर्थात बचत दर बढ़ा कर पूंजी स्टॉक में वृद्धि करना है ताकि आर्थिक विकास की गति को बढ़ाया जा सके अधिक प्रासंगिक है
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