रोजगार सिद्धांत आय तथा रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धांत
क्लासिकल जो अर्थशास्त्री थे उनका मानना था कि अर्थव्यवस्था में हमेशा पूर्ण रोजगार की स्थिति बनी रहती है क्लासिकल यहां मानते थे अर्थव्यवस्था में हमेशा रोजगार बना रहता है उनका मानना था अर्थव्यवस्था में कभी भी बेरोजगारी नहीं आती है उनका यह विचार पूर्ण रोजगार की स्थिति जेबी से के नियम से प्रभावित था उनका मानना था कि यदि किसी देश में बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो ऐसी आर्थिक शक्तियां अपने आप कार्य करने लग जाएंगी जिससे फिर से पूर्ण रोजगार की स्थिति स्थापित हो जाएगी वर्ष 1929 और 33 के दौरान पूंजीवादी देशों में बड़ी मंदी की स्थिति आई जिससे उनमें व्यापक रूप से बेरोजगारी फैल गई सकल घरेलू उत्पाद तथा राष्ट्रीय आय का स्तर गिर गया इस कारण उत्पादन घटा कल कारखाने बंद हो गए तथा प्रति व्यक्ति नियम आय के कारण जनता को विपत्ति तथा कष्ट का सामना करना पड़ा अतः विद्वानों का प्रतिष्ठित आर्थिक सिद्धांत से विश्वास उठ गया
अतः जॉन मेनार्ड केंस ने अपनी पुस्तक General theory of Employment interest and mòney वर्ष 1936 में क्लासिकल आधार तत्व को एक सिरे से नकार दिया उसने नवीन अर्थशास्त्र का विकास किया जिसने आर्थिक विचारधारा तथा नीति में क्रांति ला दी परंपरागत अर्थशास्त्री ने एच मिल तथा पीगू से सामान्य सिद्धांत का समर्थन किया जिसका कींस तथा कींस वादी अर्थशास्त्रियों ने खंडन करते हुए आलोचना की
कीन्स ने माना है कि यदि मंदी के दौर में पूंजी की सीमांत उत्पादकता कम होती है तो ब्याज की दर में कमी निजी निवेश को प्रेरित करने में असमर्थ रहेगी यदि निवेश परियोजनाओं पर सार्वजनिक व्यय के माध्यम से राज्य में वृद्धि कर सकता है इस प्रकार जब एक बार निवेश बढ़ने लगते हैं तो रोजगार तथा आय में वृद्धि होती है और बड़े हुए आय से उपभोग वस्तुओं के लिए मांग बढ़ती है जिससे रोजगार तथा आय मैं वृद्धि होती है
रोजगार का यह संतुलन स्तर वास्तव में अल्प रोजगार का का स्तर होगा क्योंकि जब आय बढ़ती है तो उपभोग भी बढ़ता है परंतु आय में वृद्धि की अपेक्षा कम मात्रा में उपभोग फलन का यह आचरण आय तथा उपभोग के अंतर को बढ़ाता है
अतः जॉन मेनार्ड केंस ने अपनी पुस्तक General theory of Employment interest and mòney वर्ष 1936 में क्लासिकल आधार तत्व को एक सिरे से नकार दिया उसने नवीन अर्थशास्त्र का विकास किया जिसने आर्थिक विचारधारा तथा नीति में क्रांति ला दी परंपरागत अर्थशास्त्री ने एच मिल तथा पीगू से सामान्य सिद्धांत का समर्थन किया जिसका कींस तथा कींस वादी अर्थशास्त्रियों ने खंडन करते हुए आलोचना की
कीन्स ने माना है कि यदि मंदी के दौर में पूंजी की सीमांत उत्पादकता कम होती है तो ब्याज की दर में कमी निजी निवेश को प्रेरित करने में असमर्थ रहेगी यदि निवेश परियोजनाओं पर सार्वजनिक व्यय के माध्यम से राज्य में वृद्धि कर सकता है इस प्रकार जब एक बार निवेश बढ़ने लगते हैं तो रोजगार तथा आय में वृद्धि होती है और बड़े हुए आय से उपभोग वस्तुओं के लिए मांग बढ़ती है जिससे रोजगार तथा आय मैं वृद्धि होती है
रोजगार का यह संतुलन स्तर वास्तव में अल्प रोजगार का का स्तर होगा क्योंकि जब आय बढ़ती है तो उपभोग भी बढ़ता है परंतु आय में वृद्धि की अपेक्षा कम मात्रा में उपभोग फलन का यह आचरण आय तथा उपभोग के अंतर को बढ़ाता है
केंज का आय उत्पादन एवं रोजगार का पूर्ण मॉडल व्यक्त किया गया ब्याज दर MEC और निवेश में संबंध व्यक्त करता है भाग C और Bयह दर्शाया गया है कि मुद्रा की कुल मांग क्षैतिज अक्ष पर M से आगे माफी गई है भाग A में लेनदेन और सतर्कता मांग oy1और Oy2आय स्तरो पर L1वक द्वारा दिखाई गईं हैं भाग Bमे L1वक मुद्रा की सटा मांग को ब्याज दर का फलन प्रकट करता है सटा मांगMM2 हैCनिवेश को ब्याज दर एवं MECका फलन दिखाता हैMEC दो होने पर ब्याज दरOR2 होती है निवेश का स्तरOI1 है
S==C+I
Y-C=I
Y-C=S
I=S
Nice
ReplyDeleteThankyou
DeleteKeynes ke aay bachat avam viniyog samikarnon ko samjhaaiye
ReplyDeleteAp apna WhatsApp nmbar dedo ham apko link share kar denge
Deleteबहुत ही कम व्याख्या है
ReplyDeleteकृपया थोड़ा मैटेरियल और डालने का कष्ट करें
Okk ji
DeleteThora aur details me dijiye n answer 20 number ka kam se km
ReplyDeleteKaise details m chahiye apko plz btaiye ap
DeleteThanks ji
ReplyDeletePlease profecer kinss ke book ke barre me kuch aour ditell daliyee
ReplyDeleteGeneral theory ye book ke baare m
DeleteThanx divya
ReplyDeleteEconomic subject it's good.
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