उत्पादक की संस्थिति तथा प्रतिस्थापन का नियम

 उत्पादक का उद्देश्य न्यूनतम लागत पर वस्तु का उत्पादन करना होता है इसीलिए वह उत्पादन क्रिया में सबसे कुशल साधनों का प्रयोग करता है पर किसी साधन की उत्पादन कुशलता की जांच करते समय उत्पादक न केवल उत्पादन के साधनों से प्राप्त होने वाले उत्पादन अथवा उसकी उत्पादन क्षमता को ध्यान में रखकर किया जाता है बल्कि उसे दी जाने वाली कीमत या पारिश्रमिक को भी ध्यान में रखता है मान लीजिए क  तथा ख उत्पादन के दो साधन है एक दिन में किसी वस्तु की 25 इकाइयों का निर्माण कर सकता है जबकि दूसरा 10 इकाइयों का उत्पादन कर सकता है यदि क की एक दिन की मजदूरी ₹25 है तथा दूसरे की एक दिन की मजदूरी ₹5 हो तो अपेक्षाकृत पहले वाले की अधिक उत्पादकता होने के बावजूद भी उत्पादक की दृष्टि से दूसरा अधिक कुशल होगा क्योंकि क के द्वारा रूपये की लागत पर वस्तु की एक इकाई बन पाती हैं जबकि ख के द्वारा ₹1 की लागत पर उसे वस्तु की दो इकाइयां बनती हैं इसीलिए प्रत्येक उत्पादक उत्पादन के प्रत्येक साधन की इकाइयों से प्राप्त होने वाले उत्पादन तथा उस साधन के मूल्य का तुलनात्मक अध्ययन करता है दूसरे शब्दों में बहुत प्रत्येक साधन की सीमांत उत्पादकता के उसके मूल्य से तुलना करता है तथा एक साधन के स्थान पर दूसरे साधन को तब तक प्रतिस्थापित करता जाता है जब तक की यही उत्पादक की संस्थिति की स्थिति होगी यही उत्पादक के विभिन्न साधनों का आदर्श संयोग होगा यदि हम यह मान लें की साधन बाजार जहां उत्पादन के साधन खरीदे तथा बेचे जाते हैं मैं पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति है क्रेताधिकार उत्पादन के साधनों का अकेला क्रेता  नहीं है। तो उत्पादक के व्यवहार का विभिन्न साधनों के मूल्य पर कोई प्रभाव नहीं होगा इसीलिए उनका मूल्य तो परिवर्तित रहेगा पर साधनों के क्रय की मात्रा को नियंत्रित करके उत्पादक उनकी सीमांत उत्पादकता प्रभावित कर सकता है यदि उत्पादन ह्रास नियम क्रियाशील हो तो जैसे-जैसे किसी एक साधन की मात्रा घटती जाएगी सीमांत उत्पादकता बढ़ती जाएगी इस प्रकार स्पष्ट है कि साधनों के मूल्य के ऊपर नियंत्रण के अभाव में उत्पादक साधनों के सीमांत उत्पादन को ही समायोजित करके उस अभीष्ट स्थिति को प्राप्त कर लेता है जहां एक साधन के सीमांत उत्पादन तथा उसके मूल्य का अनुपात अन्य साधनों के अलग-अलग उसी अनुपात के बराबर हो जाए उत्पादक के संस्थित निर्धारण की यह क्रिया आनुपातिकता के सिद्धांत के नाम से जानी जाती है और इस क्रिया में वह तब तक एक साधन पर दूसरे को प्रतिस्थापित करता जाता है जब तक की यह अभीष्ट स्थिति नहीं प्राप्त हो जाती इसीलिए इस क्रिया को उत्पादन का प्रतिस्थापन का सिद्धांत कहा जाता है। 

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