उत्पादन में प्रतिस्थापन का नियम

उपभोक्ता के सन्दर्भ में हम लोगों ने देखा है कि उपभोक्ता की सबसे प्रमुख समस्या उपभोक्ता के संस्थित निर्धारण की है उपभोक्ता अपने सीमित साधनों को विभिन्न वस्तुओं पर किस प्रकार से व्यय करें जिससे उसे अधिकतम संतुष्टि मिले उसी प्रकार उत्पादन के उपलब्ध साधनों को किस प्रकार से उत्पादन में लगाये जिससे उसे अधिकतम उत्पादन न्यूनतम उत्पादन लागत पर मिल सके अर्थात उसे प्रति इकाई लागत के फल स्वरुप अधिकतम लाभ की प्राप्ति हो सके इस प्रकार उपभोक्ता की सबसे प्रमुख समस्या अधिकतम संतुष्टि की प्राप्ति की है जबकि उत्पादक की प्रमुख समस्या अधिकतम लाभ की प्राप्ति है प्रत्येक विवेक पूर्ण उत्पादक जो अपने लाभ को सदैव अधिकतम करने का प्रयास करता है एक दिए हुए उत्पादन को प्राप्त करने के लिए लागत को न्यूनतम करने का प्रयास करेंगे इसे दूसरे शब्दों में समझेंगे एक निश्चित उत्पादन व्यय के बदले अधिक से अधिक उत्पादन प्राप्त करने का प्रयास करेगा यही वास्तव में उत्पादक के संस्थित के निर्धारण की समस्या है और इस संस्थिति की स्थिति जहां उत्पादन अपना लाभ अधिकतम कर सके अथवा न्यूनतम लागत पर अधिकतम लाभ प्राप्त कर सके वह एक साधन के स्थान पर दूसरे साधन को दूसरे साधन के स्थान पर तीसरी साधन को प्रतिस्थापित करता है। इसीलिए यह समस्या उत्पादन क्रिया में प्रतिस्थापन के सिद्धांत के नाम से जानी जाती है और साधनों में परस्पर प्रतिस्थापन के बाद उसे साधनों का एक ऐसा सहयोग प्राप्त हो जाता है जिस पर उसे न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त हो जाता है साधनों का यह अभीष्ट संयोग ही आदर्श संयोग है और इसीलिए उत्पादन की इस समस्या को साधनों के आदर्श संयोग के चुनाव के नाम से जाना जाता है यह स्पष्ट है कि अधिकतम लाभ या न्यूनतम लागत अधिकतम उत्पादन की प्राप्ति अथवा उत्पादक की संस्थिति की प्राप्ति उत्पादन क्रिया का साध्य है जिसे प्रत्येक विवेकपूर्ण उत्पादक प्राप्त करने का प्रयास करता है और उत्पादक के विभिन्न साधनों के बीच प्रतिस्थापन की क्रिया अथवा साधनों के आदर्श संयोग का चुनाव उस साध्य को प्राप्त करने का साधन है उत्पादक के संस्थित निर्धारण की समस्या साधनों के बीच परस्पर प्रतिस्थापन तथा साधनों के आदर्श संयोग के चुनाव की समस्या परस्पर संबंध है वस्तुत: तो यह एक ही समस्या के अलग-अलग पहलू मात्र है संस्थित की समस्या की व्याख्या दो भागों में विभक्त करके की गई है पहले अत्यंत ही प्रारंभिक रूप में फिर अनुपातिक के सिद्धांत या प्रतिस्थापन के नियम के अंतर्गत ही और तब दूसरे भाग में उत्पादन फलन तथा उत्पादक की संस्थिति के अंतर्गत की गई है 

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