तकनीकी बेरोजगारी एवं चक्रीय बेरोजगारी
सबसे पहले हम जानते हैं तकनीकी बेरोजगारी का क्या अर्थ है पहले से प्राप्त रोजगार वाले व्यक्तियों का रोजगार छिन जाना क्योंकि अब पहले से अधिक उन्नत प्रकार की मशीनरी अथवा टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जाने लगा है उन्नत तथा अधिक पूंजी गहन मशीनों के साथ प्रायः श्रम की कम मात्रा की आवश्यकता पड़ती है इसीलिए जब तकनीकी दृष्टि से उन्नत तथा अधिक पूंजी गहन मशीन उत्पादन के कार्य में लगाई जाती हैं तो पहले से लगे कई व्यक्तियों को रोजगार से जवाब मिल जाता है और इस प्रकार बेरोजगारी उत्पन्न हो जाती है प्रसिद्ध समाजवादी लेखक कार्ल मार्क्स ने तकनीकी बेरोजगारी पर जोर दिया और कहा कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं का अधिक से अधिक विकास होगा और मशीनों का अधिक प्रयोग होगा भारी मात्रा में तकनीकी बेरोजगारी उत्पन्न हो जाएगी जिससे श्रमिक की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो जाएगी तकनीकी बेरोजगारी विकसित तथा अल्प विकसित दोनों प्रकारों के देशों में पाई जाती भारत में सूती वस्त्र उद्योगों में स्वचालित करघों के प्रयोग के कारण कई श्रमिकों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा इसीलिए सरकार ने स्वचालित करघों को स्थापित करने कीी तब अनुमति दी जबकि उनके स्थापित करने पर श्रमिकों को नौकरियों से निकाला नहीं जाएगा इसी प्रकार विकसित तथा अल्प विकसित देशों में कई कार्यालय में कंप्यूटर के प्रयोग से कई व्यक्तियों को रोजगार से हाथ धोना पड़ता है यही कारण है कि श्रमिक लोग कंप्यूटर तथा स्वचालित करघों के लगाने का विरोध करते हैं
चक्रीय बेरोजगारी ----- यह एक महत्वपूर्ण प्रकार की बेरोजगारी है अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव के कारण उत्पन्न होती है आर्थिक उतार चढ़ावों को अर्थशास्त्री व्यावसायिक चक्र की संज्ञा देते हैं व्यावसायिक चक्र के अंतर्गत पूंजीवादी देशों में कभी तो मंदी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और कभी तेजी की चक्रीय बेरोजगारी मंदी की स्थिति में पैदा होती है निवेश में कामी होने के कारण मांग के घाट जाने से इस प्रकार की बेरोजगारी उत्पन्न हो जाती है इसीलिए इस प्रकार की बेरोजगारी को न्यून मांग द्वारा उत्पन्न बेरोजगारी कहते हैं जब समस्त मांग कम होती है तो वस्तुओं का विक्रय काम हो जाता है वस्तुओं के विक्रय को कम देख कर उत्पादक उत्पादन को घटा देते हैं उत्पादन घटने के परिणाम स्वरुप कई श्रमिकों को नौकरियों से निकाल दिया जाता है इस प्रकार व बेरोजगार हो जाते हैं 1929 से 1933 के बीच में भीषण मंदी आई उसमें इस प्रकार की बेरोजगारी इतनी बड़ी मात्रा में उत्पन्न हो गई की सब और हाहाकार मच गया पूंजीवादी की आलोचना होने लगी 1933 में इंग्लैंड में बेरोजगारी श्रम शक्ति का 25 प्रतिशत तक बढ़ गयी थी
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