पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग द्वारा मूल्य निर्धारण

 मूल्य निर्धारण के सिद्धांत के संबंध में प्राय : मतभेद रहता है आर्थिक विचारों के इतिहास को देखने से ऐसा पता चलता है कि क्लासिकल अर्थशास्त्री जैसे एडम स्मिथ तथा रिकॉर्डो ने यह मत प्रतिपादित किया कि किसी वस्तु का मूल्य उसे वस्तु की उत्पादन लागत द्वारा निर्धारित होती है वस्तु की कीमत पर मांग का प्रभाव तो पड़ता है किंतु पूर्ति शीघ्र ही मूल्य निर्धारण की व्यवस्था अपने हाथों में ले लेती है पर इन अर्थशास्त्रियों ने केवल एक पक्ष पर ही ध्यान दिया कुछ ऐसी परिस्थितियों हो सकती है जिनमें उत्पादन लागत का मूल्य के ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है यदि एक मकान का निर्माण बहुत अधिक लागत लगकर जंगल में कर दिया जाए तो ऐसी स्थिति में लागत के बराबर मूल्य नहीं हो सकेगा ऐसी वस्तुएं जो संयुक्त रूप से उत्पादित होती है जैसे खली तथा तेल कपास तथा बिनोला उनमें अलग-अलग भाग की उत्पादन लागत मालूम करना कठिन होता है कुछ ऐसी भी वस्तुएं हो सकती हैं जिनकी उत्पादन लागत तो बहुत कम रही हो पर इस समय उन्हें प्राप्त करने के लिए अधिक मूल्य देना पड़े जैसे पुराने सिक्के दुर्लभ चित्र आदि यदि कोई वस्तु किसी व्यक्ति को सस्ते में गिरी मिले तो उसे व्यक्ति के लिए तो उस वस्तु को वह व्यक्ति बिना मूल्य के नहीं बेचेगा यदि किसी वस्तु की उपयोगिता ना हो तो उसका मूल्य भी नहीं होगा पर उपयोगिता पर आधारित यह दृष्टिकोण भी एकपक्षीय है क्योंकि केवल उपयोगिता के आधार पर ही मूल्य का निर्धारण नहीं होता है जल की उपयोगिता तो असीम होती है पर उसके लिए प्राय कुछ भी मूल्य नहीं देना पड़ता है जबकि हीरे के लिए  जिसमें उपयोगिता बहुत कम होती है मूल्य अधिक देना पड़ता है मार्शल ने यहां मत प्रकट किया कि ना तो क्लासिकल अर्थशास्त्रियों का दृष्टिकोण ठीक है और ना उपयोगिता पर आधारित अर्थशास्त्रियों का वस्तु का मूल्य उस वस्तु की मांग तथा उस वस्तु की पूर्ति के द्वारा निर्धारित होता है वस्तु की मांग वस्तु से मिलने वाली उपयोगिता पर निर्भर करती है तथा वस्तु की पूर्ति उसकी उत्पादन लागत पर निर्भर करती है मार्शल के अनुसार वस्तु के मूल्य की प्रक्रिया में मांग और पूर्ति दोनों महत्वपूर्ण है यह बात दूसरी है कि किसी परिस्थिति में मांग अधिक प्रभाव पूर्ण हो तो किसी दूसरी परिस्थिति में पूर्ति अधिक शक्तिशाली होगी जिस प्रकार से हम इस बात पर विवाद कर सकते हैं की कैंची का ऊपरी फल अथवा नीचे वाला फल एक कागज के टुकड़े को काटता है इस प्रकार इस बात पर मतभेद हो सकता है मूल्य उपयोगिता द्वारा निर्धारित होता है अथवा उत्पादन लागत द्वारा यह सत्य है कि जिस समय किसी एक फल को स्थिर रखा जाता है और काटने का कार्य दूसरे फल से किया जाता है उस समय हम कह सकते हैं कि काटने का कार्य दूसरे ने किया है पर यह विवरण पूर्णता शक्ति नहीं है मार्शल के अनुसार वह अवस्था जहां मांग तथा पूर्ति एक दूसरे के बराबर हो वही मूल्य निर्धारण होता है यह संस्थिति मूल्य होता है क्योंकि मांग एवं पूर्ति की दो परस्पर विरोधी शक्तियां इसी मूल्य पर साम्य की स्थिति में आ जाएंगी यदि मूल्य इससे अधिक हुआ तो मांग में कमी होगी फल स्वरुप मूल्य नीचे गिरेगा इसके विपरीत स्थिति में यदि मूल्य नीचे हो जाए तो मांग अधिक होगी पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत उद्योग द्वारा मूल्य निर्धारण बाजार में उसकी वस्तु की समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति की शक्तियों के द्वारा होता है उद्योग की समग्र पूर्ति तथा समग्र मांग क्या है इसके द्वारा मूल्य किस प्रकार निर्धारित होता हैतथा समग्र मांग क्या है इसके द्वारा मूल्य किस प्रकार निर्धारित होता है

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