विकासशील देशों में उधमकर्ताओं का निवेश संबंधी व्यवहार

 जब व्यवसायी भविष्य में लाभ अर्जन के विषय में निराशावादी होते हैं तो लाभ की प्रत्याशी दर घट जाती है जो निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है व्यवसायों का यह निवेश व्यवहार जिसे केन्ज ने प्रस्तुत किया भारत जैसे विकासशील देश विशेष कर उनके आधुनिक क्षेत्र पर उतना ही लागू होता है जितना विकसित देशों में भारत के प्रसिद्ध अर्थशास्त्री सुखमय  चक्रवर्ती लिखते हैं समाज की बचत दर को प्रोत्साहित किया जाए पर्याप्त नहीं है इसे इस बात को भी सुनिश्चित करना है कि निवेश वातावरण भी बेहतर होना चाहिए निवेश के निर्णय की बचत निर्णय से अलग रूप से विवेचना की जाती है निवेश एक और लाभ की प्रकाशित दर तथा दूसरी ओर ब्याज की दर से निर्धारित होता है लाभ की प्रत्याशी दर जिसे पूंजी की सीमांत उत्पादकता कुशलता की संज्ञा दी उधमकर्ताओं  कि भविष्य में लाभ संबंधी प्रत्याशाओं पर निर्भर करती है जिस पर केंन्ज ने बहुत बल दिया है तकनीकी ज्ञान की वर्तमान स्थिति में औद्योगिक प्रक्रियाओं में अचल पूंजी का अधिक प्रयोग होता है जो की अचल पूंजी में निवेश करने का निर्णय दीर्घकाल के अनिश्चित भविष्य के लिए लगाना होता है प्लीज विषय में समय और अनिश्चित के महत्वपूर्ण भूमिका होती है इस स्थिति में इसे प्रत्याशाओं पर ध्यान देना होता है जो केन्ज सिद्धांत की ओर ले जाता है यह बात महत्वपूर्ण है कि 1997 से 2002 में भारत में निजी निवेश में कम वृद्धि औद्योगिक विकास की मंद गति के लिए जिम्मेदार थी भौतिक पूंजी तथा कंपनियों के शेयरों में निजी निवेश की मंद वृद्धि को निवेशकों की निराशावादी तथा आशावादी प्रत्याशाओं से है भारत में 1997 से 2002 में उधम करता लाभ अर्जित करने के विषय में निराशावादी हो गए थे जिससे उनके द्वारा निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ इन निराशावादी आकांक्षाओं का कारण उस समय सरकार द्वारा सार्वजनिक निवेश में कमी राजनीतिक अस्थिरता तथा सरकार के महत्वपूर्ण आर्थिक सुधारो को लागू करने के लिए क्षमता के बारे में अनिश्चित के कारण लाभ अर्जन के विषय में निवेशकों का विश्वास घट गया था जिसने उन्हें निवेश करने के लिए निरूपित किया इन सब तथ्यों से सिद्ध होता है कि केंन्ज द्वारा निवेश का सिद्धांत विकासशील देशों के लिए सही है

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