पूर्ण प्रतियोगिता में मूल्य तथा उत्पादन निर्धारण

 पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत मूल्य तथा उत्पादन निर्धारण की समस्या पर विचार करेंगे बाजार तथा बाजार के ढांचे के ऊपर विस्तार से प्रकाश डालेंगे इसको मुख्यतः दो रूपों में विभक्त किया जाता है पहले बाजार का आशय तथा उसका वर्गीकरण दूसरा पूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादन तथा मूल्य निर्धारण 

 बाजार का आशय तथा उसका वर्गीकरण--- सामान्यतया बाजार शब्द का प्रयोग उस स्थान विशेष के लिए किया जाता है जहां वस्तुओं के क्रेता तथा विक्रेता इकट्ठा होकर अपनी-अपनी वस्तुओं के क्रय तथा विक्रय का कार्य करते हैं अर्थशास्त्र में बाजार शब्द का प्रयोग अत्यंत ही व्यापक अर्थ में किया जाता है जहां बाजार शब्द का अर्थ किसी एक ऐसे स्थान विशेष से नहीं लगाया जाता है जहां वस्तुओं का क्रय विक्रय किया जाता है बल्कि उस संपूर्ण क्षेत्र से होता है जिसमें वस्तु के समस्त क्रेताओं तथा विक्रेताओं के बीच इस प्रकार स्वतंत्र संपर्क  है की वस्तु कीमत की प्रवृत्ति शीघ्रता एवं सुगमता से समान होने की पाई जाती है बाजार के आशय पर प्रकाश डालते हुए सिजविक यह मत व्यक्त करते हैं कि बाजार व्यक्तियों के समूह या समुदाय को कहते हैं जिनके बीच इस प्रकार के व्यापारिक संबंध हो कि प्रत्येक व्यक्ति को सुगमता से इस बात का पूर्ण ज्ञान हो जाए कि दूसरे व्यक्ति समय-समय पर कुछ वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय किन मूल्यों पर करते हैं इसी प्रकार ऐली कहते हैं कि बाजार का आशय किसी ऐसे सामान्य क्षेत्र से होता है जिसमें वस्तु विशेष का मूल्य निर्धारण करने वाली शक्तियां कार्यशील होती हैं अंत  सारांश यह निकलता है कि अर्थशास्त्र में बाजार किसी स्थान विशेष तक सीमित नहीं बल्कि उसे समस्त क्षेत्र को बाजार कहा जाता है जिसमें किसी विशेष वस्तु के क्रेताओं के बीच प्रतियोगिता होती है 

 बाजार का वर्गीकरण या बाजार का ढांचा ---- अर्थशास्त्रियों ने अनेक आधारों पर बाजार का वर्गीकरण किया है कुछ ने क्षेत्र के आधार पर बाजार का वर्गीकरण किया और बाजार के चार रूपों की बात की स्थानीय बाजार प्रादेशिक या क्षेत्रीय बाजार अंतर्राष्ट्रीय बाजार बाजार के वर्गीकरण का सबसे प्रमुख आधार प्रतियोगिता को माना गया और इसी पर आधारित वर्गीकरण को यहां हम मूल्य निर्धारण के अंतर्गत स्वीकार करेंगे इसके अंतर्गत बाजार में किसी वस्तु की पूर्ति करने वाली फर्मो की संख्या के आधार पर बाजार का वर्गीकरण किया जाता है ऐसी स्थिति में दो स्थितियां होगी पहले जबकि प्रतियोगिता पूर्ण हो जबकि फर्मो की संख्या इतनी अधिक हो की कोई भी फर्म बाजार में प्रचलित मूल्य को प्रभावित नहीं करें दूसरा बाजार में प्रतियोगिता की समाप्ति जबकि अकेला विक्रेता हो इसे हम एकाधिकार बाजार कहते हैं इन दोनों के बीच बाजार की अनेक स्थितियां पाई जाती हैं प्रतियोगिता तथा फर्मो की संख्या के आधार पर बाजार का वर्गीकरण नीचे सूचीबद्ध किया गया है तब उसके बाद उनकी संक्षिप्त व्याख्या आगे की गई है

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