अवसर लागत तथा सामाजिक लागत

 आधुनिक अर्थशास्त्री लागत के एक तीसरे प्रकार की चर्चा करते हैं जिसे अवसर लागत कहा जाता है प्राय उत्पादन के साधनों के अनेक प्रयोग सम्मिलित होते हैं जैसे भूमि के एक टुकड़े पर दुकान बनाना गेहूं उत्पन्न करना अथवा चावल की खेती करना एक श्रमिक को मेज बनाने में लगाना उससे कुर्सी बनवाना अथवा किसी अन्य कार्य  में लगना आदि पर एक समय में किसी उत्पादन के साधन को किसी एक ही प्रयोग में लगाया जा सकता है और उसके अन्य प्रयोगों के अवसर का त्याग करना आवश्यक हो जाता है उस प्रयोग में लगे हुए उत्पादन के साधनों की अवसर लागत उन वैकल्पिक प्रयोग का त्याग ही है जिनमें उस उत्पादन के साधन को लगाया गया होता इस प्रकार आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने त्याग तथा कष्ट के माध्यम से अवसर लागत की गणना न करके उसकी गणना उस साधन के वैकल्पिक प्रयोग के आधार पर की जिसका त्याग उत्पादन के साधन को एक विशेष प्रयोग में लगाने पर करना पड़ता है इसे दूसरे रूप में इस प्रकार भी व्यक्त कर सकते हैं कि यदि उस उत्पत्ति के साधन को वर्तमान प्रयोग में ना लगाया गया होता तो किसी दूसरी वस्तु का कितना उत्पादन किया गया होगा अवसर लागत के इस विश्लेषण में स्पष्ट किया जाता है उत्पादन क्रिया में प्रयुक्त साधनों का मूल्य जो उन्हें चुकाया जाता है उत्पादन फलन उत्पादन की अवधि अर्थात उत्पादन करने वाली फार्म के पास अल्प या दीर्घ अवधि है जिसे वह मांग में परिवर्तन के अनुसार उत्पादन पूर्ति को समायोजित करने में लगता है उत्पादन लागत के ऊपर निसंदेह  साधनों के मूल्य का प्रभाव पड़ेगा पर इसके ऊपर उत्पादन फलन समयावधि तथा उत्पादन के नियमों का भी प्रभाव पड़ता है उत्पादन वृद्धि नियम के संदर्भ उत्पादन लागत में ह्रास की स्थिति होगी जबकि उत्पादन क्षमता नियम की स्थिति में लागत क्षमता की स्थिति होगी तथा उत्पादन ह्रास की स्थिति में उत्पादन लागत में वृद्धि की स्थिति होगी उत्पादन के नियमों की क्रियाशीलन के ऊपर भी समयावधि का प्रभाव पड़ेगा अब हम सामाजिक लागत तथा निजी लागत को देखेंगे कोई भी उत्पादक किसी वस्तु के उत्पादन में जो व्यक्त या अव्यक्त लगते लगता है उसके योग को हम निजी लागत कहते हैं उत्पादक की दृष्टि से यदि निजी लागत उसकी कुल उत्पादन लागत होती है उस वस्तु की उत्पादक इकाई की क्रियाओं के परिणाम स्वरूप जो लागत समाज को वहन करनी पड़ती है जिसे उत्पादक अपनी उत्पादन लागत की गणना में नहीं लेता क्योंकि वह मुद्रा के माध्यम से नहीं होती है उसे सामाजिक लागत कहते हैं फर्म की क्रिया के कारण जो प्रदूषण होता है पर्यावरण का नुकसान होता है या स्वास्थ्य खतरा लेता है यह उस उत्पादन की सामाजिक लागत है जिसको लागत के आकलन में उत्पादन में ध्यान में नहीं रखता उदाहरण के लिए एक फर्म नदी को अपने अपशिष्ट को निपटाना के लिए प्रयोग में लाते हैं तथा इस नदी का पानी शहर में लोगों द्वारा पीने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है मान लीजिए की फर्म के लगातार अपशिष्ट निपटान के कारण नदी का पानी दूषित हो जाता है और इसे पेय बनाने के लिए नगर निगम को स्पेशल प्लांट बैठना पड़ता है इस पर होने वाला व्यय स्पष्ट रूप से उस उत्पादन के सामाजिक लागत होगी जिसे लोगों को वहन करना पड़ेगा स्पष्ट है कि फर्म इस लागत को जो शहर के लोगों को इसके कारण वहन करनी पड़ती है लागत की गणना में नहीं लेती फर्म इस लागत को जो शहर के लोगों को इसके कारण बहन करनी पड़ती है लागत की गणना में नहीं लेती वास्तव में वस्तु की कुल उत्पादन लागत निजी लागत प्लस सामाजिक लागत के बराबर है केवल निजी लागत या व्यक्त लागत को ही कुल लागत   के रूप में नहीं लिया जाना

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