केन्ज के रोजगार सिद्धांत का सारांश (summary of keynes s theory of employment )
हमने केंन्ज के रोजगार सिद्धांत का विस्तार से अध्ययन करके यह समझा कि इसका सारांश योग्य क्या है हमने रोजगार तथा आय निर्धारण के सभी नियमों को एक दूसरे के साथ उचित ढंग से संबंधित करके इसका सारांश प्रस्तुत किया है या इसकी व्याख्या की है रोजगार सिद्धांत की व्याख्या में हमने यह देखा कि किसी भी देश की आय उसकी कुल रोजगार पर निर्भर करती है माना उदाहरण के लिए यदि एक व्यक्ति की आई अधिक है तो उसका रहन-सहन का तरीका अच्छा होगा और यदि एक निम्न आय वाला व्यक्ति हो उसका रहन-सहन भी निम्न कोटि का होगा इस सिद्धांत में आय के द्वारा ही रोजगार का निर्धारण होता है
यदि कल रोजगार कल समर्थ मांग जो संतुलन स्तर पर उपभोक्ता मांग तथा निवेश का जोड़ होती है पर निर्भर करती है की संतुलन की अवस्था में समस्त मांग समस्त पूर्ति के बराबर होती है अर्थव्यवस्था की समस्त पूर्ति उत्पादन की भौतिक तथा तकनीकी बातों पर निर्भर करती है और क्योंकि यह तत्व अल्पकाल में प्राय स्थिर रहते हैं तो रोजगार तथा आय की मात्रा समस्त मांग के घटने बढ़ने से बदलती है
समर्थ मांग दो मांगों का जोड़ है एक तो उपभोक्ता के लिए दूसरे निवेश के लिए मांग उपभोक्ता मांग उपभोग प्रवृत्ति और आय पर निर्भर करती है अल्पकाल में प्राय उपभोग प्रवृत्ति स्थिर रहती है निवेश मांग पूंजी की सीमांत उत्पादकता अर्थात प्रत्याशित लाभ की दर ब्याज की दर द्वारा निर्धारित होती है और चुकी निवेश मांग प्राय घंटती बढ़ती रहती है इसीलिए रोजगार तथा आय में परिवर्तन का मुख्य कारण निवेश मांग में घटना बढ़ना है ब्याज दर दो बातों से निर्धारित है पहला मुद्रा की मात्रा दूसरा जनता की नकदी के लिए अधिमान रोजगार तथा आय निर्धारण के निर्धारित तत्व है
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