अर्थशास्त्र का क्षेत्र तथा उसका स्वभाव (Scope and nature of Economics)
अर्थशास्त्र के क्षेत्र से आशय उस विषय वस्तु से है जिसका अध्ययन हम अर्थशास्त्र में करते हैं क्योंकि जब तक हमें इसका ज्ञान न हो जाए हम अर्थशास्त्र के क्षेत्र की सीमा का निर्देश नहीं कर सकते हम इस समय जिस सीमा का निर्धारण करेंगे वहीं हमेशा अर्थशास्त्र के क्षेत्र की सीमा बनी रहे कोई आवश्यक नहीं है क्योंकि हम पहले ही कह चुके हैं कि जो अर्थशास्त्र के क्षेत्र में कुछ अवधि पूर्व था वही आज भी रहे कोई आवश्यक नहीं है कि जो आज वर्तमान अवधि सम्मिलित है वही आगे आने वाली अवधि में सम्मिलित रहे कोई आवश्यक नहीं अर्थशास्त्र का क्षेत्र परिस्थितियों तथा समस्याओं के अनुसार नदी के किनारे की तरह सदैव परिवर्तनशील है तथा लोच पूर्ण है समुद्र के तट के समान अपरिवर्तनशील नहीं अर्थशास्त्र में अध्ययन की जाने वाली मानवीय आर्थिक कल्याण से संबंधित आर्थिक क्रियाओ दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है पहला है वर्तमान साधनों के आवंटन की समस्या तथा उत्पादन के साधनों की वृद्धि की समस्या इन दोनों से संबंधित प्रत्येक प्रकार की अर्थव्यवस्था पूंजीवादी समाजवादी तथा मिश्रित में आते हैं जिनके समाधान टूटने का वह प्रयास करते हैं
(क)-अर्थव्यवस्था में उपलब्ध सभी साधनों का क्या पूर्ण प्रयोग हो चुका है साधनों की पूर्ति सीमित है वे दुर्लभ हैं ऐसी स्थिति में पूर्ण उत्पादन क्षमता अथवा पूर्ण रोजगार के स्तर तक उपलब्ध साधनों का प्रयोग राष्ट्र की बहुत बड़ी क्षति है इसमें सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न यह रहता है कि यह पता लगाया जा सके की उपलब्ध साधनों का पूर्ण प्रयोग हो रहा है या अथवा नहीं यदि नहीं तो उसके पूर्ण प्रयोग के लिए नीति निर्धारित करनी चाहिए इस आर्थिक समस्या का अध्ययन अर्थशास्त्र की समष्टि भावी शाखा के अंतर्गत आता है
साधनों के आवंटन की समस्या या साधनों द्वारा किन वस्तुओं का उत्पादन किया जाए क्योंकि उत्पादन के साधन सीमित है इसीलिए विभिन्न प्रयोगों के बीच उत्पादन के साधनों के बांटने की समस्या उत्पन्न होती है पर साधनों की सीमित पूर्ति की अवस्था में यदि पूर्ण रोजगार हो
Comments
Post a Comment