केज का उपभोग सिद्धांत (keynes theory of consumption)
केन्ज ने 1936 में प्रकाशित अपनी जनरल थ्योरी में आधुनिक समष्टि अर्थशास्त्र की आधारशिला रखी उपभोग फलन के सिद्धांत ने उनके आय तथा रोजगार सिद्धांत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ब्याज दर तथा धन को सम्मिलित करते हुए अनेक व्यक्तिगत तथा वस्तुगत तत्व उपभोग व्यय के स्तर को प्रभावित करते हैं किंतु उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आय के वर्तमान स्तर पर ही एक व्यक्ति तथा समाज का उपभोग व्यय निर्भर करता है उनके उदाहरण के अनुसार कुल उपभोग की मात्रा प्रमुख रूप से कुल आय की मात्रा पर निर्भर करती है मानव प्रकृति के अपने ज्ञान तथा अनुभव के विस्तृत तथ्यों के आधार पर जिस आधारभूत मनोवैज्ञानिक नियम पर हम अत्यधिक विश्वास के साथ निर्भर कर सकते हैं वह यह है कि मनुष्य सामान्यतः औसतन अपनी आय में वृद्धि के साथ उपभोग में वृद्धि करने के आदी होते हैं किन्तु उतनी मात्रा से नहीं जितनी आय में वृद्धि होती है
उपभोग के व्यवहार के विषय में तीन बातों का उल्लेख करते हैं सर्वप्रथम वह मत व्यक्त करते हैं कि उपभोग व्यय मुख्य रूप से वर्तमान अवधि की निरपेक्ष आय पर निर्भर करता है उपभोग निरपेक्ष आय के वर्तमान स्तर का धनात्मक फलन होता है एक अवधि में किसी व्यक्ति की आय जितनी अधिक होती है उस अवधि में उसका उपभोग व्यय उतना ही अधिक होने की संभावना होती है अन्य शब्दों में किसी अवधि विशेष में निर्धन व्यक्तियों की अपेक्षा धनी व्यक्तियों की अधिक उपभोग करने की प्रवृत्ति होती है द्वितीय यह है कि उपभोग व्यय का आय से कोई अनुपातिक संबंध नहीं होता है उनके अनुसार आय में वृद्धि के साथ आय का अपेक्षाकृत कम अनुपात उपभोग किया जाता है उपभोग के आय से अनुपात को औसत उपभोग प्रवृत्ति (APC). कहा जाता है
APC=C/Y
आय मैं वृद्धि के साथ औसत उपभोग प्रवृत्ति में कमी का अभिप्राय यह होता है कि देश की राष्ट्रीय आय में वृद्धि के साथ आय में बचत के अनुपात में वृद्धि होती है यह निष्कर्ष विभिन्न आय स्तरों पर विभिन्न परिवारों के पारिवारिक बजट के अध्ययन से निकलता है धनी परिवारों द्वारा उपभोग पर व्यय की गई आय का अंश निर्धन परिवारों की अपेक्षा कम होता है इसका अभिप्राय यह है कि आय मैं वृद्धि के साथ राष्ट्रीय आय के उत्तरोत्तर बढ़तें हुए अनुपात की बचत की जाएगी आय के पूर्ण रोजगार स्तर पर साम्य प्राप्त करने तथा उसे बनाए रखना के लिए राष्ट्रीय आय के बढ़ते हुए अनुपात के निवेश करने की आवश्यकता होती है यदि पर्याप्त निवेश अवसर उपलब्ध नहीं होते हैं तो अर्थव्यवस्था कठिनाई में पड़ जाएगी और उस स्थिति में पूर्ण रोजगार बनाए रखना संभव नहीं होगा क्योंकि कुल मांग पूर्ण रोजगार पर होने वाले उत्पादन की अपेक्षा कम हो जाएगी
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