समर्थ मांग (Effective Demand)
हम देखते हैं की अर्थव्यवस्था में समस्त मांग और समस्त पूर्ति परस्पर सामान होते हैं तो रोजगार संतुलन की स्थिति में होता है जब समस्त पूर्ति दी हुई हो तो समस्त मांग के बदल जाने पर रोजगार का यह संतुलन स्तर बदल जाएगा परंतु अल्पकाल में समस्त मांग वैसी की वैसी रहती है तो यह समस्त मांग और समस्त पूर्ति का संतुलन अल्पकालिक संतुलन होगा इसे समझना कठिन नहीं है क्योंकि जब लोगों की आय कम होती है तो वह बचत नहीं कर पाते और उनकी आय का बहुत बड़ा भाग उपभोग में खर्च हो जाता है परंतु जब रोजगार का स्तर बढ़ने लगता है और रोजगार के बढ़ने से अर्थव्यवस्था में उत्पादन बढ़ जाता है जिससे आय बढ़ जाती है तो अब व्यक्ति अधिक बचत करते हैं इसका अर्थ यह है कि वस्तुओं और सेवाओं पर उनका व्यय उनकी आय बढ़ती है उतना नहीं बढ़ता खाने का मतलब है जिस हिसाब से आय बढ़ती है उतना उपभोग नहीं बढ़ता
यदि हम अर्थव्यवस्था में संतुलन स्तर को देखें तो समस्त मांग समर्थ मांग संतुलन स्तर कहलाता है हमने यह देखा कि अर्थव्यवस्था की समस्त मांग या समस्त मांग की कीमत की एक अनुसूची होती है जो रोजगार के भिन्न-भिन्न स्तरों पर समस्त मांगों को प्रदर्शित करते हैं परंतु समस्त मांग के इन विभिन्न परिणाम में से सफल परिणाम वह है जो रोजगार के उस स्तर पर अर्थव्यवस्था की समस्त पूर्ति के भी सामान है और यह समस्त मांग और पूर्ति के अल्पकालीन संतुलन को दर्शाता है समस्त मां अनेक बिंदु इस बात से भिन्न है कि समस्त मांग और पूर्ति वास्तव में एक दूसरे के समान सिद्ध होते हैं जबकि अन्य बिंदुओं पर समस्त मांग या तो समस्त पूर्ति से अधिक है या काम। अर्थव्यवस्था का अल्पकालीन संतुलन पूर्ण रोजगार से निम्न स्तर पर होता है और अर्थव्यवस्था में अभी काफी बेरोजगारी होती है
समर्थ मांग के सिद्धांत को जान लेने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी समय अर्थव्यवस्था में कुल उत्पादन पर कुल कितनी राशि व्यय की जा रही होगी अतः देखा जाए तो यह बिल्कुल कुल राशि उत्पादन के सभी सदस्यों की आयो का जोड़ है वहां पर अर्थव्यवस्था के समूचे उत्पादन का भी मूल्य है और समूचे राष्ट्रीय उत्पादन का मूल्य वही राशि है जो उद्यमियों को वस्तुएं बेचकर प्राप्त होती हैं क्योंकि सभी वस्तुएं या तो उपभोग वस्तुएं होती हैं या निवेश वस्तुएं होती हैं उपभोग तथा निवेश पर किए गए राष्ट्रीय व्ययों के जोड़ के बराबर होती है
अब आपको रोजगार तथा आय के केंन्ज द्वारा प्रस्तुत सिद्धांत का आभास होता है किसी देश के अल्पकाल में रोजगार समर्थ मांग द्वारा निर्धारित होता है और समर्थ मांग उपभोग वस्तुओं तथा निवेश वस्तुओं पर किए गए राष्ट्रीय व्यंयो के जोड़ के बराबर होती है अतः रोजगार उपभोग तथा निवेश पर किए गए व्यय निर्भर करते हैं उदाहरण में समझते हैं यदि किसी समय किन्ही कारणों से देश में या तो उपभोग बढ़ जाए या निवेश दोनों तो इसका यह अर्थ हुआ कि समर्थ मांग बढ़ जाएगी जिससे देश में रोजगार भी बढ़ जाएगा इसी प्रकार इसके विपरीत जब उपभोग अथवा निवेश मांग घट जाए तो समर्थ मांग गिर जाएगी जिस देश में रोजगार तथा आय का स–र घट जाएगा
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