आय प्रवाह में विभिन्न रिसाव और उनका गुणक पर प्रभाव

 उपभोग प्रवृत्ति के वर्णन मैं हमने एक बार देखी थी कि जब आय बढ़ती है तो उपभोग व्यय आय में हुई वृद्धि की अपेक्षा कम बढ़ता है नई आय का जो भाग उपभोग में नहीं किया जाता उसे बचा लिया जाता है उपभोग में की गई यहां कमी अथवा बचत की गई यह राशि आय प्रभाव में रिसाव के समान हैं यदि यह राशि बचाई ना जाती बल्कि उपभोग कर दी जाती तो यह भी किसी न किसी की आय में सम्मिलित होकर देश की समूची आय को  बढ़ा देती है इसीलिए यह एक प्रकार के रिसाव है जो राष्ट्रीय आय मैं अधिक वृद्धि करने में बाधा उत्पन्न करते हैं यदि यह छिद्र होते तो सीमांत उपभोग प्रवृत्ति एक होती जिससे थोड़े से निवेश से आय और रोजगार इतनी बढ़ जाते की पूर्ण रोजगार की स्थिति प्राप्त हो जाती एक करोड रुपए का निवेश प्रत्येक पग पर एक करोड रुपए है आय बढ़ाता जाएगा सीमांत उपभोग प्रवृत्ति इकाई से कम होती है यदि आय प्रभाव में यह रिसाव ना होते तो आय वृद्धि की जो श्रंखला बन जाती वह कभी समाप्त न होती अर्थात आय निरंतर तथा समान मात्रा में बढ़ती चली जाती है यह रिसाव फिर रूप में पाए जाते हैं अर्थात जो रुपया उपभोग व्यय के रूप में आय में वृद्धि नहीं करता और इस गुणक के परिणाम को कम कर देता है वह कहां जाता है वह रुपया निम्न रिसाव द्वारा निकल जाता है। 

यह देखा जाता है कि व्यवसायी ने बैंकों अथवा किन्ही दूसरे व्यापारियों आदि का ऋण चुकाना होता है उसकी आय का कुछ भाग इस ऋण के भुगतान के रूप में चला जाता है तथा वह इस भाग को उपभोग अथवा उत्पादन के लिए प्रयोग में नहीं लाता ऋण के भुगतान के रूप में दी गई राशि आय  के प्रवाह में से निकल जाती है यह भी संभव है कि इस लौटाई हुई राशि को बैंक फिर किन्ही  व्यक्तियों को ऋण के रूप में दे इस अवस्था में यह फिर किसी न किसी की आय का रूप धारण कर लेगी यदि बैंकों को ऋण लेने वाले ना मिले तो यह राशि निरर्थक ही पड़ी रहेगी    कीमतों में वृद्धि होने से निवेश का वास्तविक आय तथा रोजगार बढ़ाने पर पूर्ण प्रभाव नहीं पड़ता गुणक वास्तविक आय तथा उत्पादन के रूप में तब होता है जबकि उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन को शीघ्र तथा सरलता से बढ़ाया जा सके परंतु जब निवेश के फल स्वरुप मुद्रा आय तथा उपभोक्ता वस्तुओं की बढ़ी हुई मांग के कारण से उनकी कीमतें बढ़ जाती हैं ऐसी दशा में मुद्रा आय में जो वृद्धि होगी वह बड़े हुए मूल्य में ही खप जाएगी वास्तविक आय अथवा उत्पादन के रूप में नहीं अतः कीमतो में वृद्धि भी एक प्रकार की रिसाव है जो वास्तविक आय के रुप में गुणक को कम कर देती है 

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