उपभोग का सापेक्ष आय सिद्धांत

 एक अमरीकी अर्थशास्त्री जे एस डूजेनबरी ने उपभोक्ता के व्यवहार का एक ऐसा सिद्धांत प्रतिपादित किया है जो कि उपभोग के निर्धारक तत्वो के रूप में एक व्यक्ति की निरपेक्ष आय के बजाय उसकी सापेक्ष आय पर अधिक जोड़ देता है केन्ज के उपभोग सिद्धांत से डूजेनबरी द्वारा किया गया अन्य विचलन यह है कि उनके अनुसार एक व्यक्ति का उपभोग उसकी वर्तमान आय पर निर्भर नहीं करता बल्कि उसकी पहले प्राप्त की गई निश्चित आय स्तर पर निर्भर करता है  

डुजेनबरी की सापेक्षिक आय परिकल्पना के अनुसार एक व्यक्ति का उपभोक्ता उसकी निरपेक्ष आय का फलन नहीं बल्कि समाज में आय के वितरण में उसकी सापेक्ष स्थिति का फलन होता है अर्थात् उसके उपभोक्ता समाज में अन्य लोगों की आय की तुलना में उसकी सापेक्ष आय का फलन होता है। जैसे यदि समाज में सभी समूहों की आय समान प्रतिशत से विभाजित है, तो उसकी सापेक्ष आय पूर्ववत बनी रहेगी, हालांकि उसकी सापेक्ष आय पूर्ववत बनी रहेगी, लेकिन उसकी सापेक्ष आय पूर्व बनी रहेगी, मूलतः एक व्यक्ति की आय पर उसकी आय का समान अनुपात बनी रहेगी, जिससे वह अपनी आय का समान अनुपात बनाए रखेगी। निरपेक्ष वृद्धि के पूर्व में कर रहा था अर्थात निरपेक्ष आय में वृद्धि के बावजूद उसका औसत  उपभोग प्रवृत्ति (एपीसी) पूर्ववत बना रहेगा   

 उपभोग के निर्धारक तत्व के रूप में सापेक्षिक आय पर जोर देने का कारण सापेक्ष आय परिकल्पना का यह मत व्यक्त करता है कि परिवार या व्यक्ति अपने पड़ोसियों या किसी विशिष्ट समुदाय में अन्य परिवारों की नकल करने का प्रयास करते हैं इस प्रदर्शन प्रभाव कहा जाता है इसमें दो निष्कर्ष निकालते हैं प्रथम यह की औसत उपभोग प्रवृत्ति कम नहीं होती इसका कारण यह है कि यदि सभी परिवारों की आय में समान अनुपात में वृद्धि होती है तो आय का सापेक्ष वितरण परिवर्तित बना रहेगा और इसीलिए सापेक्ष आय। पर निर्भर रहने वाले उपभोग व्यय का आय से अनुपात स्थिर बना रहेगा 

 द्वितीय यह है कि एक निश्चित आय वाला परिवार किसी ऐसे समुदाय में निवास कर रहा है जिसमें उस  आय  को सापेक्ष रूप में कम माना जाता है वह अपनी आय के अपेक्षाकृत अधिक भाग को उपभोग में लगाएगा दूसरी ओर यदि एक परिवार किसी ऐसे समुदाय में निवास कर रहा है जिसमें इस आय को अपेक्षाकृत अधिक माना जाता है तो वह अपनी आय का अपेक्षाकृत कम अनुपात व्यय करेगा शहरी क्षेत्र में रहने वाले परिवारों की अपेक्षाकृत अधिक उपभोग प्रवृत्ति प्रदर्शनकारी प्रभाव की क्रियाशीलता के कारण होती है जिसमें अपेक्षाकृत अधिक आय वाले वे परिवार निवास करते हैं जिनके अपेक्षाकृत अधिक उपभोग के स्तर अपेक्षाकृत कम आय वर्ग के अन्य लोगों को अधिक उपभोग करने के लिए प्रेरित करते हैं 


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