उपभोग फलन का महत्व
उपभोग फलन की धारणा का सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक महत्व भी बहुत है प्रत्येक देश की सरकार तथा जनता यह चाहती है कि देश में बेकरी दूर हो देश प्रफुल्लित हो तथा राष्ट्रीय आय में वृद्धि हो इस उद्देश्य के लिए एक सुनियोजित आर्थिक नीति की आवश्यकता है आर्थिक नीति के निर्माण में देश की उपभोग प्रवृत्ति का बड़ा गहरा हाथ रहता है जब उपभोग फलन के महत्व का विवरण देंगे प्रथम उपभोग प्रवृत्ति की धारणा की जानकारी से यह सिद्ध हो जाता है कि से का नियम सही नहीं है ऐसा क्यों कहा गया इस पर विचार करते हैं इस नियम के अनुसार अर्थव्यवस्था में अत्युत्पादन नहीं हो सकता दीर्घकाल में तो फिर भी यह नियम कुछ अंशु में लागू हो सकता है किंतु अल्पकाल में बिल्कुल नहीं दीर्घकाल में तो संभव है की मांग इतनी बढ़ जाए कि देश का सारा उत्पादन बिक जाए बाजार की शक्तियां दीर्घकाल में स्वयंमेंव संभवत संतुलन में आ जाए किंतु अल्पकाल में इस प्रकार का स्वयं में संतुलन स्थापित नहीं हो सकता अतः कुछ समय के लिए तो सामान्य अत्युत्पादन हो सकता है से के नियम के अनुसार उत्पादन स्वयं में अपनी माग को उत्पन्न कर सकता है किंतु इस पर आपत्ति यह है कि यद्यपि उत्पादन अपने पूर्ण मूल्य की आय का निर्माण कर लेता है किंतु आय का निर्माण होता है वह सारी की सारी उपभोग नहीं की जाति और उसका कुछ भाग बचा लिया जाता है ऐसा इसलिए है क्योंकि उपभोग प्रवृत्ति इकाई से कम होती है इसका यह परिणाम होता है की सारा का सारा उत्पादन बाजार में बिक नहीं पाता अतः स्पष्ट है कि पूर्ति अपनी मांग पूरी तरह उत्पन्न नहीं करती और मांग की अपेक्षा अधिक रहती है इससे का नियम असत्य सिद्ध हो जाता है पूर्ति के मांग की अपेक्षा अधिक होने के कारण सामान्य अत्युत्पादन तथा सामान्य बेरोजगारी उत्पन्न हो सकती है जो की से के नियम के विरुद्ध है
उपभोग फलन की अन्य महत्वपूर्ण बात यह है कि इससे निवेश के निर्यातक महत्व का पता चलता है उपभोग फलन हमें यह बताता है कि लोग अपनी आय में हुई वृद्धि की अपेक्षा उपभोग कम बढ़ाते हैं अतः यह आवश्यक है कि आय तथा उपभोग के अंतर की खाई को भरने के लिए आवश्यक निवेश किया जा सके अन्यथा देश में उत्पादन अथवा रोजगार बढ़ाना लाभदायक नहीं होगा हमें यह भी पता है कि उपभोग फलन लगभग स्थिर रहता है अतः आय तथा रोजगार में जो परिवर्तन होते हैं उनका मुख्य कारण निवेश की अस्थिरता इससे यह स्पष्ट होता है कि देश में आय तथा रोजगार के निर्धारण करने में निवेश का बड़ा भारी महत्व है यदि उपभोग फलन बढ़ जाए तो निवेश के बिना भी आय तथा रोजगार बढ़ाई जा सकते हैं उपभोग प्रवृत्ति के प्राय न बढ़ने के पूर्ण रोजगार लाने के लिए निवेश को ही बढ़ना पड़ेगा।
उपभोग फलन से यह भी ज्ञात होता है कि किस प्रकार पूंजी की सीमांत उत्पादकता की प्रवृत्ति घटने की ओर होती है क्योंकि आय में वृद्धि से उपभोग प्रवृत्ति नहीं बढ़ती इसलिए जब आय बढ़ेगी तो वस्तुओं का उपभोग अथवा मांग पर्याप्त मात्रा में नहीं बढ़ेंगे वस्तुओं की नई मांग के कारण भविष्य के लिए उद्यमियों की लाभ की आशंसाए अच्छी नहीं होंगी परिणाम स्वरुप पूंजी की सीमांत उत्पादकता में दीर्घकाल में घटने की प्रवृत्ति होगी इससे देश में निवेश निरुत्साहित होगा निवेश के पर्याप्त मात्रा में होने से देश की प्रगति रुक जाएगी और दीर्घकालीन बेरोजगारी का संकट उत्पन्न हो जाता है इसका कारण उपभोग फलन स्थिरता है जिससे पूंजी की सीमांत उत्पादकता घट जाती है यदि उपभोग फलन आय के बढ़ने के साथ बढ़ती रहती है तो दीर्घकालीन स्थिर अवस्था उत्पन्न होती है
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