उपभोग प्रवृत्ति को निर्धारित करने वाले तत्व
किसी देश में उपभोग प्रवृत्ति किन तत्वों पर निर्भर करती है अर्थात उपभोग प्रवृत्ति के वक्र का स्तर किन तत्वों द्वारा निर्धारित होता है और इस उपभोग प्रवृत्ति में परिवर्तन क्यों होता है केंन्ज ने उपभोग प्रवृत्ति को निर्धारित करने वाले तत्वों को दो भागों में विभक्त किया है एक प्रकार के तत्वों को उन्होंने व्यक्तिपरक तत्वों की संज्ञा दी है दूसरे प्रकार के तत्वों को वस्तुपरक तत्व कहां है पहले हम वस्तुपरक तत्वों को देखेंगे तथा इनका विश्लेषण करेंगे यह किन नीतियों पर अपना काम करते हैं वस्तुपरक तत्व छह प्रकार के होते हैं सबसे पहले इसमें जो है वह है राजकोषीय नीति पर विश्लेषण करेंगे
राजकोषीय नीति--राजकोषीय नीति अर्थात कर संबंधी नीति भी उपभोग प्रवृत्ति को प्रभावित करती है किसी देश में भारी मात्रा में प्रत्यक्ष कर जैसे की बिक्री कर तथा उत्पादन कर लगाने से उपभोग प्रवृत्ति को काम किया जाता है इसी प्रकार जब सरकार लोगों पर करो में कमी कर देती है तो लोगों का उपभोग बढ़ जाता है राशनिंग और कीमतों पर नियंत्रण से भी उपभोग प्रवृत्ति को काम किया जा सकता है जैसे कि दूसरे महायुद्ध के कल में किया गया आधुनिक काल में सरकार द्वारा कल्याणकारी राज्य की नीति जिसके अंतर्गत धनी व्यक्तियों पर आरोही कर लगाकर निर्धन व्यक्तियों को कई सुविधाएं अथवा सेवाएं उपलब्ध कराई जाती है ने उपभोग प्रवृत्ति को बढ़ाने की ओर काम किया है
ब्याज की दर---ब्याज की दर भी उपभोग प्रवृत्ति अथवा बचत को निर्धारित करती है प्राय यह कहा जाता है कि ब्याज की दर बढ़ने पर लोगों द्वारा बचत बढ़ जाती है जिससे उनकी उपभोग प्रवृत्ति कम होती है परंतु ऐसा सभी व्यक्तियों की हालत में नहीं होता कई व्यक्ति ऐसे होते हैं जो भविष्य में एक स्थिर और निश्चित आय प्राप्त करना चाहते हैं जब ब्याज दर बढ़ जाती है तो ऐसे व्यक्तियों की उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाएगी अथवा बचत कम हो जाएगी क्योंकि ब्याज दर के बढ़ने पर उन्हें एक निश्चित आय प्राप्त करने के लिए आय मैं काम बचत करने की आवश्यकता पड़ती है परिणाम स्वरुप जब ब्याज की दर बढ़ जाती है तो ऐसे व्यक्ति काम बचत करते हैं इसीलिए यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता की ब्याज दर में परिवर्तन से क्या समस्त समाज की उपभोक्ता प्रवृत्ति में परिवर्तन होगा या नहीं
आकस्मिक लाभ अथवा हानि ---आकस्मिक लाभ और हानियां उपभोग प्रवृत्ति को निर्धारित करती है जब शेयर की कीमत बढ़ जाती है तो शेयर होल्डर अपने आप को अधिक धनी लग जाते हैं और अधिक उपभोग करने की प्रेरित होते हैं इसके विपरीत जब शेयरों की कीमतें घट जाती है तो शेयर होल्डरों को आकस्मिक हानि उठानी पड़ती है तो वह पहले से अपने को अपेक्षाकृत निर्धन समझने लगा और अपना उपभोग घटा देते हैं इसी प्रकार अन्य प्रकार के आकस्मिक लाभ अथवा हानि भी उपभोग प्रवृत्ति को बदल देती है
कीमत स्तर में परिवर्तन ---कीमतों में परिवर्तन भी उपभोग प्रवृत्ति को निर्धारित करता है जब कीमतें बढ़ जाती है तो देश में मुद्रास्फीति होती है तो लोग बचत काम करने को बाध्य हो जाते हैं और उनकी उपभोग प्रवृत्ति बढ़ जाती है जब कीमतें अधिक हो तब लोगों को अपने जीवन निर्वाह के लिए अपनी आय का अधिक भाग उपभोग पर व्यय करना पड़ता है इसके अतिरिक्त जब कीमतों में बढ़ाने की प्रवृत्ति अथवा मुद्रास्फीति पाई जाती है तो लोगों के पास जमा मुद्रा राशियों तथा वित्तीय परिसंपत्तियों के वास्तविक मूल्य में कमी हो जाएगी इसीलिए वह बचत करने को इतना लाभ कर नहीं समझेंगे यह भी उपभोग को बढ़ाने की ओर कार्य करता है
व्यक्तिपरक तत्व----तीन तत्वों में लोगों के वे प्रयोजन अथवा उद्देश्य सम्मिलित होते हैं जो लोगों को अपनी आय में से कुछ भाग बचाने के लिए प्रोत्साहित करते हैं प्रथम लोग अपनी आय में से अज्ञात संकटों जैसे की बीमारी बेरोजगारी के लिए धन बचा कर सुरक्षित रखना चाहते हैं दूसरे व्यक्ति भविष्य में धान की प्रत्याशी जरूर जैसे कि बच्चों की पढ़ाई शादी ब्याव को पूरा करने के लिए कुछ धन बचा कर रखना चाहते हैं तीसरा कई लोग वर्तमान आय में से इसलिए बचाने के लिए प्रेरित होते हैं ताकि वह बचे हुए धन का निवेश अथवा वियोग कर सके जिससे उनके भविष्य में आय में वृद्धि हो निवेश से उनको ब्याज अथवा लाभ की आय प्राप्त होगी जो उनकी आय में बढ़ोतरी करेगी चौथे कई लोग इसलिए बचाने को प्रेरित होते हैं ताकि वह काफी मात्रा में धन जमा कर सकें जिससे कि वह सामाज में ऊंचे स्तर के व्यक्ति गिने जाए उपयुक्त तत्व लोगों को बचत करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं इसीलिए उपभोग प्रवृत्ति को कम कर देते हैं
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