जे० वी० सी का बाजार नियम
जे.वी.सी एक फ्रांसीसी अर्थशास्त्री थे जिन्होंने 1803 में अपनी एक पुस्तक में बाजार का नियम प्रतिपादित किया यह एक क्लासिकल अर्थशास्त्री थे दोस्तों अब आप सोच रहे होंगे क्लासिकल का मतलब क्या है तो मैं आपको बता दूं क्लासिकल में वह अर्थशास्त्री आते हैं जो रिकॉर्ड के पहले वाले अर्थशास्त्री होते थे जेबीसी का यह मानना था कि यदि बाजार में किसी वस्तु की पूर्ति होती है तो वह अपनी मांग स्वयं ही पैदा करती है अतः पूर्ति अपनी मांग स्वयं उत्पन्न करती है इसीलिए से ने मांग की कमी के कारण उत्पादन तथा रोजगार में वृद्धि नहीं रख सकती परिणाम स्वरूप सकल उत्पादन तथा रोजगार का संतुलन पूर्ण रोजगार के स्तर पर निश्चित होता है। जब कोई उत्पादन कार्य संपन्न किया जाता है उसमें लगाए गए श्रमिकों तथा अन्य उत्पादन के साधनों की आय में बढ़ोतरी होती है इन्हीं साधनों की आयो में वृद्धि के कारण उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं तथा सेवाओं की मांग उत्पन्न होती है समग्र उत्पादित वस्तुएं उपभोक्ता पदार्थ नहीं होते हैं उनमें कुछ पूंजी पदार्थ भी होते हैं जिनकी निवेशक मांग करते हैं प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों के मत अनुसार समस्त अर्जित आय उपभोक्ताओं वस्तुओं तथा सेवाओं पर व्यय नहीं होती इसका एक भाग बचा लिया जाता है और यह बचत आय प्रभाव मैं लिक है किंतु उनके विचार था कि आय की गई बचत राशि के समान ही निवेश व्यय होता है और इस प्रकार अर्जित आय का एक भाग उपभोक्ता वस्तुओं तथा सेवाओं पर और शेष भाग पूंजी पदार्थ की खरीद पर निवेश किया जाता है इस प्रकार प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री यह तर्क देते थे कि बचत होने पर भी मांग की न्यूनता की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता और पूर्ण रोजगार पर संतुलन बने रहने की प्रवृत्ति होती है अब हमारे मन में प्रश्न यह उठता है कि किस आधार पर प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री यह दावा करते थे कि निवेश व्यय बचत के समान होगा उनका मानना था कि यह ब्याज की दर में परिवर्तन है जो निवेश को बचत के समान सुनिश्चित करता है उनके अनुसार ब्याज की दर बचत की पूर्ति तथा निवेश के लिए मांग द्वारा निर्धारित होती है यदि किसी कारण निवेश बचत से कम है तो इसका यह अर्थ होगा कि समस्त मांग समस्त पूर्ति से कम होगी अतः स्पष्ट है कि या निष्कर्ष में हम इसको समझेंगे जैसे अर्थशास्त्रियों का मानना है जनता द्वारा आय का एक भाग बचत कर लेने की स्थिति में भी मांग की न्यूनता की समस्या उत्पन्न नहीं होती है क्योंकि ब्याज दर में समायोजन द्वारा निवेश और बचत परस्पर सामान हो जाते हैं उत्पादन प्रक्रिया में सर्जित आय का एक भाग उपभोक्ता पदार्थो तथा सेवाओं पर व्यय होता है तथा शेष भाग उत्पादित पूंजी पदार्थ की खरीद पर निवेश गए होता है इस प्रकार पूर्ति अपनी मांग स्वयं उत्पन्न करती है थैंक यू धन्यवाद आपको अगर कोई और टॉपिक चाहिए होगा तो आप हमें कमेंट में जरूर बताइएगा
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