अनधिमान वक्र
अधिमान वक्र का विश्लेषण सबसे पहले सन 1881 में एडवर्ड ने किया था अधिमान वज्र उपभोक्ता के व्यवहार की स्थिति तब होती है जब दो या दो से अधिक अध्यवसाय के ऐसे सहयोग को चित्रित किया जाता है जिससे उपभोक्ताओं को सम संतुष्टि वज्र या संपूर्ण वज्र की आपूर्ति प्राप्त होती है। हम किसी भी व्यक्ति से इस रूप में बात कर सकते हैं
u=(x1...x2......xn=s)
यह फलनात्मक स्वरूप यह स्पष्ट करता है कि दो या दो से अधिक युग्म हो सकते हैं यदि हम इन युग्मों का विश्लेषण करते हैं तो हम दोनों श्लोकों की अलग-अलग मात्राओं को चित्रित करने वाले अनेक ऐसे बिंदु प्राप्त करेंगे जो सामान सचित्र चित्रित करेंगे और सामान इन युग्मों को पूरा करने वाले विभिन्न परिमाणों को पूरा करेंगे जिन्हें प्राप्त करने के बाद उन्हें ही हम तटस्थता वक्र प्राप्त करेंगे। या अधिमान वज्र कहते हैं इसी तरह हम यह भी कह सकते हैं कि इस वज्र को उन सहयोगियों को चित्रित करने वाले बिंदुओं का बिंदु दिया गया है जो उपयोगकर्ता को सामान संतुष्टि प्रदान करते हैं क्योंकि इस पर स्थित सभी बिंदु समान संतुष्टि प्रदान करते हैं। हम सम संतुष्टि वर्ज भी कहते हैं और क्योंकि सभी बिंदु सामान सप्लाय देते हैं इनके बीच चुनाव करने में उपभोक्ता तटस्थ हो जाता है इसलिए इसे हम तटस्थता वक्र कहते हैं
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