सम सीमांत उपयोगिता नियम का महत्व
सम सीमांत उपयोगिता अर्थशास्त्र का एक अत्यंत महत्वपूर्ण तथा व्यापक सिद्धांत है इस सिद्धांत का व्यावहारिक तथा सैद्धांतिक महत्व कम नहीं हुआ क्योंकि सामान्यतः हम विवेकशील हैं तथा अपने अधिकतम कल्याण का ख्याल रखते हैं आर्थिक अनुसंधान के प्रत्येक क्षेत्र में सम सीमांत उपयोगिता नियम प्रयोग किया जाता है उपभोग तथा उत्पादन के क्षेत्र में हम लोगों ने इस नियम के क्रियाशील तथा महत्व की व्याख्या को किस प्रकार इस नियम की सहायता से उपभोक्ता तथा उत्पादक संस्थिति बिन्दु को प्राप्त है जहां दोनों को अधिकतम लाभ प्राप्त होता है अब हम कुछ और क्षेत्रों मैं इस नियम के प्रयोग करते हैं
(क)-कृषि क्षेत्र म--कृषि के क्षेत्र में किसान के सम्मुख प्राय यह समस्या रहती है कि अपने विभिन्न क्षेत्रों में खेतों में किसी विशेष फसल का उत्पादन करें तथा यह भी समस्या रहती है कि अपनी सीमित आय को विभिन्न उपयोगों जैसे कुआं बनवाना बेल खरीदना आदि पर किस प्रकार से व्यय करें कि जहां तक किसान अपने विभिन्न खेतों में इस प्रकार से फसल उगाता है जिससे प्रत्येक से मिलने वाला सीमांत उत्पादन बराबर हो तथा दूसरे प्रश्न के समाधान के लिए यह कहा जा सकता है कि विभिन्न उपयोगों में अपना साधन इस प्रकार से लगाएंगे की द्रव्य की अंतिम इकाई से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता प्रत्येक उपयोग के बराबर हो
(ख) मुद्रा तथा वस्तु का वर्तमान तथा भावी प्रयोग ---व्यवहारी जीवन में प्राय यह देखा जाता है कि उपभोक्ता अपनी वर्तमान आय का कितना भाग वर्तमान समय में उपभोग कर डाले तथा कितना भाग बचत करें यही समस्या वस्तुओं के वर्तमान तथा भावी प्रयोग के भी संबंध में हो सकती है इस नियम के आधार पर वह वर्तमान तथा भावी प्रयोग के बीच अपनी आय अथवा वस्तुओं को इस प्रकार बाटेंगे की उनसे मिलने वाले वर्तमान की सीमांत उपयोगिता उनसे मिलने वाले भविष्य की सीमांत उपयोगिता बराबर के हो जाए
(ग)- राजस्व के संदर्भ में नियम का प्रयोग--राजस्व का सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत यह है कि अधिकतम सामाजिक कल्याण का सिद्धांत भी सम सीमांत उपयोगिता नियम पर आधारित है कर के संबंध में नीति निर्धारित करते समय सरकार को कर इस प्रकार लगाना चाहिए कि जिससे कर से मिलने वाली सीमांत उपयोगिता उससे होने वाली सीमांत त्याग के बराबर हो सार्वजनिक व्यय के संबंध में भी सरकार अपनी नीति का निर्धारण इस सिद्धांत के आधार पर कर सकती है अतः निष्कर्ष में हम यह समझ सकते हैं कि सीमित साधनों का असीमित उद्देश्य की संतुष्टि के सम्बन्ध में इस नियम कि आवश्यकता होती है यह नियम उपभोग, उत्पत्ति, विनिमय मैं प्रमुख है
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