अर्थशास्त्र के नियमों की प्रकृति

 हमने आपको अपने पहले लेख में यह बताया था की जो प्राकृतिक तथा आर्थिक नियम  क्या होते हैं उनकी व्याख्या की थी आज हम आपको अर्थशास्त्र के नियमों के बारे में यह मानवीय जीवन पर कैसे लागू होते हैं इसके बारे में बताएंगे जो प्राकृतिक तथा आर्थिक नियम होते हैं वह दोनों ही कारण एवं कार्य के हेतु संबंध का प्रदर्शन करते हैं पर इस क्षमता के बावजूद भी आर्थिक नियम प्राकृतिक नियमों से भिन्न है जहां तक कारण एवं कार्य के हेतु का प्रश्न आता है यह बताने का प्रश्न है कि किसी दिए हुए कारण का एक निश्चित परिणाम होगा आर्थिक नियम प्राकृतिक नियम के समान है क्योंकि आर्थिक नियम यह दिखाते हैं कि परिणाम को निश्चित करने वाली दशाओं पर मानव व्यवहार का प्रभाव पड़ता है अतः इस दृष्टि से यह नियम प्राकृतिक नियमों से भिन्न होते हैं यह केवल यही बताने का प्रयास करते हैं की दी हुई परिस्थिति में मनुष्य अथवा मनुष्य के व्यवहारों की क्या संभावना है इस प्रकार आर्थिक नियम प्राकृतिक नियमों की तरह निश्चित स्वभाव के नहीं होते अर्थशास्त्र का महत्वपूर्ण नियम मांग का नियम यह प्रतिपादित करता है कि किसी वस्तु के मूल्य गिरने पर उस वस्तु की मांग बढ़ जाती है यदि व्यवहारिक जीवन में देखा जाए तो हम पाएंगे कि यह परिणाम निश्चित रूप से सदैव सही नहीं होगा यदि वस्तु इतनी निष्कर्ट कोटी की हो तो इसका अधिक उपयोग नहीं बढ़ाया जा सके तो मूल्य गिरने के बावजूद भी नहीं बढ़ेंगे अर्थशास्त्र के नियम परिकल्पनात्मक है यदि उपयोगिता हास नियम के लागू होने के लिए यह अनिवार्य है कि उपभोक्ता की आई मानसिक स्थिति तथा फैशन में परिवर्तन ना हो पर यह दशाएं प्राय पायी नहीं जाती है  फलस्वरूप नियम काल्पनिक भी माने जाते हैं प्राकृतिक नियमों की विषय वस्तु में किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता है पर मनुष्य एक चेतन भाव प्रधान बुद्धि युक्त स्वेच्छाचारी तथा संवेदनशील प्राणी है उसके व्यवहारों को नियमों की सीमित परिधि में बाधा नहीं जा सकता अतः परिवर्तनशील मानवीय आचरण पर आधारित आर्थिक नियम अनिश्चित तथा संदिग्ध स्वभाव के होंगे इतना ही नहीं प्राकृतिक नियमों के प्रयोग तथा परीक्षण के लिए प्रयोगशालाएं हैं पर आर्थिक नियमों का परीक्षण प्रयोगशालाओं से संभव नहीं है क्योंकि अनुसंधान शालाओं में मनुष्य के ऊपर प्रयोग उतना संभव नहीं है पर प्राकृतिक नियमों की तुलना में कम निश्चित होने के बावजूद भी आर्थिक नियमों की उपायदेयता मैं कमी नहीं आती प्राकृतिक विज्ञान के नियमों की तुलना में आर्थिक नियम कुछ कम निश्चित भले ही हो जाते हैं पर अन्य सामाजिक विज्ञानों की तुलना में काम अनिश्चित तथा कम संदिग्ध होते हैं ऐसी परिस्थिति  में आर्थिक नियम वैज्ञानिक नियमों से कम निश्चित सिद्ध नहीं होंगे अर्थशास्त्र के किसी भी क्षेत्र में यदि आवश्यक आंकड़े तथा उपलब्ध हो तो तथ्य अपरिवर्तित रहे तो उन तथ्यों पर आधारित परिणाम की घोषणा उन्हें के संबंध में निश्चित रूप से सत्य सिद्ध होगी। इस संबंध में पीगू का दृष्टिकोण उल्लेखनीय माना जाता है आर्थिक शक्तियों का प्रभाव सभी दृष्टियों से पूर्ण विद्युत मशीनों पर नहीं पड़ता बल्कि इनका प्रभाव मनुष्यों पर पड़ता है परिणाम यह होता है कि जब मनुष्य परिस्थितियों के बदलने के कारण इन नियमों को व्यवहारिक जीवन में क्रियाशील होते नहीं पाया जाता है तो इन नियमों के संबंध में भ्रांति में पड़ जाते हैं पर वस्तु स्थिति तो यह है की मान्यताओं के ना पूरा होने पर आर्थिक नियम ही प्राकृतिक नियम भी लागू नहीं होंगे अतः निष्कर्ष में हम यह समझ सकते हैं कि जिन मान्यताओं पर अर्थशास्त्र के नियम आधारित हो यदि वे मान्यताएं निश्चित तथा परिवर्तित हो तो उन पर आधारित विशिष्ट आर्थिक नियम सत्य एवं असंदिग्ध होंगे तथा उसके द्वारा प्रतिपादित निष्कर्ष तथा घोषणाएं सत्य एवं अटल होगी इस प्रकार आर्थिक नियम सर्वव्यापक एवं उपयोगी है आशा है आप सभी लोगों को समझ में आया होगा धन्यवाद, 👏

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