मजदूरी तथा रोजगार के बीच केन्जीय मतों
मजदूरी तथा रोजगार के बीच संबंध के बारे में केन्ज ने अपने विचार इन क्लासिकी स्थापनाओं को स्वीकार करके शुरू किए थे कि घटते प्रतिफलो का नियम तथा सीमांत उत्पादकता का सिद्धांत दोनों ही कार्यशील रहते हैं क्योंकि प्रत्येक वर्कर को सीमांत उत्पादन के बराबर मजदूरी दी जाती है और उद्योगों में घटते प्रतिफल का नियम चलता है इसीलिए यदि रोजगार बढ़ाना है तो मजदूरी अवश्य घटेगी परन्तु इसका यह मतलब नहीं है कि बेरोजगारी इसलिए थी कि वर्कर अपने सीमांत उत्पादन के बराबर मजदूरी लेने से इन्कार कर रहे थे केन्ज के अनुसार समस्त मांग की कमी के परिणामस्वरूप बेरोजगारी थी मांग ही रोजगार को निर्धारित करती है और रोजगार वास्तविक मजदूरी दर को निर्धारित करता है
इस बात को स्थापित करने के लिए केन्ज ने मुद्रा मजदूरी और वास्तविक मजदूरी में अन्तर स्पष्ट किया है केन्ज ने यह लक्ष्य किया है कि इन दोनों में उलट संबंध होता है जब मुदा मजदूरी घटाई जाती है तो वास्तविक मजदूरी बढ़ती है इसका कारण यह है कि मुद्रा मजदूरी गिरने से कीमतों में समानुपातिक से अधिक पतन होगा जब कीमतें गिरती है तो मुद्रा का मूल्य बढ़ जाने के कारण वास्तविक मजदूरी बढ जाती है कीमतें गिरने से समस्त मांग उत्पादन आय और रोजगार घट जाएगे इसीलिए मुद्रा मजदूरी में कटौती कीमतों को घटा देगी और समस्त मांग को तथा परिणामस्वरूप रोजगार को कम कर देगी
केन्ज का मानना है कि समस्त अर्थव्यवस्था के लिए मुद्रा मजदूरी में कटौती करनेसे
इस बात को स्थापित करने के लिए केन्ज ने मुद्रा मजदूरी और वास्तविक मजदूरी में अन्तर स्पष्ट किया है केन्ज ने यह लक्ष्य किया है कि इन दोनों में उलट संबंध होता है जब मुदा मजदूरी घटाई जाती है तो वास्तविक मजदूरी बढ़ती है इसका कारण यह है कि मुद्रा मजदूरी गिरने से कीमतों में समानुपातिक से अधिक पतन होगा जब कीमतें गिरती है तो मुद्रा का मूल्य बढ़ जाने के कारण वास्तविक मजदूरी बढ जाती है कीमतें गिरने से समस्त मांग उत्पादन आय और रोजगार घट जाएगे इसीलिए मुद्रा मजदूरी में कटौती कीमतों को घटा देगी और समस्त मांग को तथा परिणामस्वरूप रोजगार को कम कर देगी
केन्ज का मानना है कि समस्त अर्थव्यवस्था के लिए मुद्रा मजदूरी में कटौती करनेसे
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