परिणाम सिद्धांत की अपेक्षा बचत निवेश सिद्धांत की श्रेष्ठता ( superior ity of savings investment theory over the quantity theory )

मुद्रा के परिणाम सिद्धांत की तुलना में मुद्रा के बचत निवेश सिद्धांत से श्रेष्ठ आधारों पर समझने का प्रयत्न करते हैं इसमें हम बचत निवेश सिद्धांत की श्रेष्ठता को व्यापार चक्र की उत्कर्ष तथा अधोमुख अवस्थाओं के दौरान कीमत में जो परिवर्तन होते हैं परिणाम सिद्धांत उनकी व्याख्या करने में असमर्थ हैं यह सिद्धांत यह नहीं स्पष्ट करता है कि क्यों मंदिर के दौरान मुद्रा की अधिकता भी पुनः प्रवर्तन नहीं कर पाती और कर्मों मुद्रा का अभाव तेजी को नहीं रोक पाता

(१)आय सिद्धांत इसलिए परिमाण सिद्धांत से श्रेष्ठ है कि वह इनकी व्याख्या करता है बचत निवेश सिद्धांतों के अनुसार जब बचत से  निवेश बढ़ जाता है तो मंदी से पुन्हा प्रवर्तन प्रारंभ हो जाता है पुनः प्रवर्तन के लिए केवल मुद्रा पूर्ति का बढ़ाना पर्याप्त नहीं है लाभ की व्यापार प्रत्याशाओ अथवा पूंजी की सीमांत उत्पादकता में वृद्धि होने पर ही निवेश को प्रोत्साहन मिलता है और पुनः प्रवर्तन शुरू हो जाता है दूसरी ओर केवल मुद्रा की पूर्ति कम होने से तेजी नहीं रुक जाती बल्कि वह तो इसीलिए रुकती हैं कि लाभ की प्रत्याशाए    गिर जाने के कारण बचत निवेश मैं होने वाले परिवर्तन ही चकरी उतार-चढ़ाव लाते हैं मुद्रा का परिणाम सिद्धांत तो जैसे समुद्र के सामान्य  स्तर की व्याख्या करता है और बचत एवं निवेश लहरों के ज्वार भाटे की व्याख्या करता है

(२)-- मुद्रा का परिणाम सिद्धांत मुद्रा के प्रचलन के वेग में परिवर्तनों के कारणों की व्याख्या नहीं करता बचत निवेश सिद्धांत इस दृष्टि से श्रेष्ठ है कि वह इस तरह के परिवर्तनों की उचित व्याख्या करता है जब बचत निवेश से बढ़ती हैं तो इसका मतलब है कि लोग अधिक मुद्रा का संग्रह कर रहे हैं और थोड़ा खर्च कर रहे हैं इससे मुद्रा के प्रचलन का वेग कम हो जाता है इसके विपरीत जब निवेश बचत से बढ़ता है तो लोग अधिक व्यय कर रहे हैं जिससे मुद्रा के प्रचलन का वेग बढ़ जाता है इसी प्रकार मुद्रा के प्रचलन के वेग में परिवर्तनो के लिए बचत तथा निवेश में संबंध ही उत्तरदायी है

(३)---मुद्रा का परिणाम सिद्धांत मुद्रा की मात्रा और कीमत स्तर के बीच कारण प्रभाव संबंध की व्याख्या करने में असमर्थ वह केवल इतना ही बताता है कि दोनों में प्रत्यक्ष एवं समानुपाती संबंध होता है बचत निवेश सिद्धांत इस दृष्टि से श्रेष्ठ है कि वह बताता है कि मुद्रा पूर्ति तथा कीमत स्तर में ना तो प्रत्यक्ष संबंध होता है और ना ही समानुपात बचत तथा निवेश में असंतुलन के कारण ही कीमत स्तर में परिवर्तन होते हैं मुद्रा की मात्रा में जो वृद्धि होती है उसका कुछ भाग बचा लिया जाता है और कुछ भाग खर्च कर दिया जाता है
यदि बचत से निवेश बढ़ जाएगा तो आय बढ़ेगी जो समस्त व्यय उत्पादन रोजगार और कीमतों को बढ़ा देगी जब निवेश से बचत बढ जाएगी तो स्थित इसके उलट होगी इस प्रकार मुद्रा के परिणाम और कीमत स्तर में कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं है

फिर जब मुदा का परिणाम बढ़ता है तो कीमत स्तर में समानुपाति वृद्धि नहीं होती है जब तक अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी संसाधन रहेंगे तब तक मुदा आय बढ़ने से कीमत स्तर नहीं बढ़ेगा बशर्ते कि समस्त मांग में वृद्धि के अनुपात में उत्पादन बढ़ता जाए मुद्रा के परिणाम में होने वाली वृद्धि के अनुपात में कीमत स्तर केवल तभी बढ़ेगा जब संसाधन पूर्ण रोजगार में लगे होंगे
(४)- यह सिद्धांत पूर्ण रोजगार पर आधारित है यही कारण है कि वह मुद्रा के परिणाम और कीमत स्तर में प्रत्यक्ष संबंध स्थापित करता है बचत निवेश सिद्धांत उससे इसलिए श्रेष्ठ है कि वह उस स्थिति में कीमत स्तर पर मुद्रा के प्रभाव का विश्लेषण करता है जब अर्थव्यवस्था में अल्परोजगार होता है

(५)- मुद्रा के परिणाम सिद्धांत की अपेक्षा बचत निवेश सिद्धांत इसलिए अधिक यथार्थिक है कि यह मुद्रा के मूल्य या कीमत स्तर में अल्पविकसित में होने वाले परिवर्तनो की व्याख्या करता है जबकि मुद्रा का परिणाम सिद्धांत दीर्घकालीन में होने वाले परिवर्तन की व्याख्या करता है जो अवास्तविक है कि क्योंकि दीर्घकाल में सभी की मृत्यु हो जाती है
(६)--फिर मुद्रा के परिणाम सिद्धांत की अपेक्षा बचत निवेश सिद्धांत इस दृष्टि से श्रेष्ठ है कि यह मुद्रा का मूल्य निर्धारित करने में मौद्रिक और वास्तविक दोनों प्रकार के साधनों को ध्यान में रखता है कि मुद्रा के परिणाम और समस्त व्यय के साथ साथ बचत निवेश समस्त उत्पादन जैसे साधन भी लिए जाते हैं यह आय सिद्धांत को मुद्रा परिणाम सिद्धांत से श्रेष्ठ बनाता है

 (७)--मुद्रा के परिणाम सिद्धांत की अपेक्षा बचत निवेश के नीति विषयक निहित तत्व अधिक यथार्थिक है मुद्रा का परिणाम सिद्धांत पूर्ण रूप से मौद्रिक नीति पर ध्यान केंद्रित करता है दूसरी और बचत निवेश सिद्धांत व्यय तथा आय पर अधिक बल देता है जो कि आर्थिक क्रिया को मुद्रा के परिणाम की अपेक्षा अधिक प्रभावित करते हैं 

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