केन्ज का व्यापार चक्र (Keynes theory of the trade cycle)

 हेलो दोस्तों आज हम पढ़ेंगे केन्ज के व्यापार चक्र के बारे में आशा  है आपको समझ में आये तो दोस्तों शूरू करते हैं केन्ज का व्यापार चक्र किस किस पर आधारित है

                केन्ज के व्यापार चक्र के प्रमुख ॳग


  1. केन्ज का व्यापार चक्र का सिद्धांत उसके आय उत्पादन तथा रोजगार विषयक सिद्धांत का अभिन्न अंग है व्यापार चक्र आय उत्पादन तथा रोजगार के आवती उतार-चढ़ाव होते हैं
व्यापार चक्र का प्रमुख कारण पूजी की सीमांत उत्पादकता में चक्रीय परिवर्तन है जोकि भले ही पेचीदा होता है और जिसे अर्थव्यवस्था के अन्य महत्वपूर्ण अल्पकालीन चरो में सम्बन्ध परिवर्तन प्राय गम्भीर बना देते हैं
  1. केन्ज के अनुसार मंदी तथा बेरोजगारी का प्रमुख कारण है समस्त माग का अभाव समस्त मांग बढ़ाकर पुनरुत्थान किया जा सकता है और उपभोग अथवा निवेश बढ़ाकर समस्त मांग बढ़ाती जा सकती है
  2. उपभोग अल्प काल के लिए स्थिर रहता है इसीलिए निवेश बढ़ाकर पुनरुत्थान किया जा सकता है इसी प्रकार अवनति का प्रमुख कारण हैं निवेश होने वाली कमी  है।
  3. निवेश की दर में उतार-चढ़ाव पर निर्भर करता है और निवेश की दर में उतार चढाव रहते हैं पूंजी की सीमांत उत्पादकता पूंजी की सीमांत उत्पादकता में होने वाले उतार-चढ़ाव रहते हैं
  4. पूंजी की सीमांत उत्पादकता पूजी परिसंपत्तियों की पूर्ति कीमत तथा उनके प्रत्याशित प्रतिफल पर निर्भर करते हैं क्योंकि अल्पकालीन में पूजी परिसंपत्तियों की पूर्ति कीमत स्थिर रहती है इसीलिए पूजी की सीमांत उत्पादकता को पूंजी परिसंपत्तियों के प्रत्याशित प्रतिफल निर्धारित कर देंगे जो आगे व्यापार प्रत्याशियों पर निर्भर रहेंगे
केन्जीय चक्र में पहले प्रसार की अवस्था को लेते हैं इसमें पूंजी की सीमांत उत्पादकता अधिक होती हैं व्यापारी लोग आशावादी होते हैं निवेश की दर तेजी से बढ़ती हैं परिणाम तो हो उत्पादन रोजगार और आय में वृद्धि होती है निवेश में प्रत्येक वृद्धि के परिणाम स्वरूप आय के गुणांक प्रभाव के माध्यम से कई गुना वृद्धि होती हैं इस प्रकार बढ़ते निवेश आय तथा रोजगार की संचाई प्रक्रिया तब तक चलती रहती है जब तक कि व्यापारिक तेजी नहीं आ जाती 
जो जो तेजी बढ़ती है वैसे वैसे पूंजी की सीमांत उत्पादकता दो कारणों से गिरने लगती हैं प्रथम वस्तुओं का लगातार उत्पादन होता है वैसे वैसे उस पर चालू प्रतिफल घटता जाता है दूसरे साथ साथ माल और श्रम की कमियों तथा अड़चऩो के कारण नई पूंजी वस्तु की चालू लागते बढ़ती है

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