केन्ज द्वारा पुनः व्यवस्थापित मुद्रा का परिणाम सिद्धांत (Keynes s reformulated quantity theory of money)
केन्ज द्वारा व्यवस्थापित मुद्रा का परिणाम सिद्धांत कई मान्यताएओ पर आधारित है यह मान्यता निम्न हैं
(१)---जब तक थोड़ी बहुत बेरोजगारी भी रहती है तब उत्पादन के सभी साधनों की पूर्ति पूर्ण लोचदार होती है
(२) -- सभी बेकार साधन समरूप पूर्णतया विभाजन एवं परस्पर परिवर्तन शील होते हैं
(३)-- पैमाने के प्रतिफल स्थिर होते हैं जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन बढ़ने पर कीमतें नहीं बढ़ती या घटती
(४)---जब तक कोई भी बेकार संसाधन रहते हैं तब तक प्रभावी मांग तथा मुद्रा का परिणाम उसी पैमाने अनुपात में बढ़ता है
इन मान्यताओं के दिये हुए होने पर मुद्रा के परिणाम में तथा कीमतों में होने वाले परिवर्तन के बीच कार्य-कारण की केन्जीय श्रृंखला व्याज की दर के माध्यम से अप्रत्यक्ष होती है इसीलिए जब मुदा का परिणाम बढ़ता है तो उसका पहला असर व्याज की दर पर पड़ता है जो गिरने लगती है पूजी की सीमांत उत्पादकता दी हुई होने पर व्याज की दर गिरने से निवेश की मात्रा बढ़ेगी बढ़े हुए निवेश के कारण गुणक प्रभाव के माध्यम से प्रभावी मांग बढ़ेगी जिसके परिणामस्वरूप आय उत्पादन और रोजगार बढ़ेंगे क्योंकि बेरोजगारी की स्थिति में उत्पादन के साधनों का पूर्ति वक्र पूर्ण लोचदार होता है
इसीलिए मजदूरी तथा गैर मजदूरी साधन स्थिर परिश्रमिक दर पर उपलब्ध होते हैं क्योंकि पैमाने के प्रतिफल स्थिर होते हैं जब तक थोड़ी सी बेरोजगारी भी रहती है तब तक उत्पादन में वृद्धि होने पर कीमतें नहीं बढ़ेंगी इन परिस्थितियों में उत्पादन और रोजगार उसी अनुपात में प्रभावी मांग बढ़ेगी जब तक एक बार पूर्ण रोजगार की स्थित आ जाती है तो मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन होने पर उत्पादन में बिल्कुल कोई परिवर्तन नहीं होता है और यही बात प्रभावी मांग के संबंध में होती है पूर्ति में परिवर्तनों नहीं होता है मुद्रा की पूर्ति में होने वाले परिवर्तनो का सम्पूर्ण प्रभाव कीमतों पर पड़ता है जो कि प्रभावी मांग में वृद्धि के साथ ठीक उसी अनुपात में मुद्रा का परिणाम बढ़ेगा उसी अनुपात में उत्पादन बढ़ेगा और कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होगा जब पूर्ण रोजगार होगा तो जिस अनुपात में मुद्रा के परिणाम में परिवर्तन होगा उसी अनुपात में कीमतों में परिवर्तन होगा इसलिए पुनः व्यवस्थापित मुद्रा का परिणाम सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि मुद्रा के परिणाम में वृद्धि होने पर कीमतें तभी बढ़ती है जब पूर्ण रोजगार की स्थिति आ जाती है उससे पहले नहीं
(१)---जब तक थोड़ी बहुत बेरोजगारी भी रहती है तब उत्पादन के सभी साधनों की पूर्ति पूर्ण लोचदार होती है
(२) -- सभी बेकार साधन समरूप पूर्णतया विभाजन एवं परस्पर परिवर्तन शील होते हैं
(३)-- पैमाने के प्रतिफल स्थिर होते हैं जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन बढ़ने पर कीमतें नहीं बढ़ती या घटती
(४)---जब तक कोई भी बेकार संसाधन रहते हैं तब तक प्रभावी मांग तथा मुद्रा का परिणाम उसी पैमाने अनुपात में बढ़ता है
इन मान्यताओं के दिये हुए होने पर मुद्रा के परिणाम में तथा कीमतों में होने वाले परिवर्तन के बीच कार्य-कारण की केन्जीय श्रृंखला व्याज की दर के माध्यम से अप्रत्यक्ष होती है इसीलिए जब मुदा का परिणाम बढ़ता है तो उसका पहला असर व्याज की दर पर पड़ता है जो गिरने लगती है पूजी की सीमांत उत्पादकता दी हुई होने पर व्याज की दर गिरने से निवेश की मात्रा बढ़ेगी बढ़े हुए निवेश के कारण गुणक प्रभाव के माध्यम से प्रभावी मांग बढ़ेगी जिसके परिणामस्वरूप आय उत्पादन और रोजगार बढ़ेंगे क्योंकि बेरोजगारी की स्थिति में उत्पादन के साधनों का पूर्ति वक्र पूर्ण लोचदार होता है
इसीलिए मजदूरी तथा गैर मजदूरी साधन स्थिर परिश्रमिक दर पर उपलब्ध होते हैं क्योंकि पैमाने के प्रतिफल स्थिर होते हैं जब तक थोड़ी सी बेरोजगारी भी रहती है तब तक उत्पादन में वृद्धि होने पर कीमतें नहीं बढ़ेंगी इन परिस्थितियों में उत्पादन और रोजगार उसी अनुपात में प्रभावी मांग बढ़ेगी जब तक एक बार पूर्ण रोजगार की स्थित आ जाती है तो मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन होने पर उत्पादन में बिल्कुल कोई परिवर्तन नहीं होता है और यही बात प्रभावी मांग के संबंध में होती है पूर्ति में परिवर्तनों नहीं होता है मुद्रा की पूर्ति में होने वाले परिवर्तनो का सम्पूर्ण प्रभाव कीमतों पर पड़ता है जो कि प्रभावी मांग में वृद्धि के साथ ठीक उसी अनुपात में मुद्रा का परिणाम बढ़ेगा उसी अनुपात में उत्पादन बढ़ेगा और कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होगा जब पूर्ण रोजगार होगा तो जिस अनुपात में मुद्रा के परिणाम में परिवर्तन होगा उसी अनुपात में कीमतों में परिवर्तन होगा इसलिए पुनः व्यवस्थापित मुद्रा का परिणाम सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि मुद्रा के परिणाम में वृद्धि होने पर कीमतें तभी बढ़ती है जब पूर्ण रोजगार की स्थिति आ जाती है उससे पहले नहीं
Nice
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