मुद्रा के दोष (Defects of money)

बाइबल में लिखा है कि पैसे का मोह ही सब बुराइयों की जड़ है दोस्तों यह बात सही भी है  मुद्रा तो वस्तुओं का आवरण अथवा वस्त्र रैपर माना जाता है मुद्रा तो वस्तुओं तथा सेवाओं के विनिमय को आसान बनाने के लिए सुविधाजनक औजार मात्र है परन्तु उनकी उत्पादित मात्राओं की निर्धारक नही है
मुद्रा के दोष के आवरण में छुपे हैं और कई बार पर्दे के पीछे जो होता है वह उससे नितान्त भिन्न होता है जो सामने होता हुवा लगता है

मुद्रा एक ऐसा उपयोगि नौकर है जो मालिक की भांति आचरण करना शुरू करके प्राय दुर्व्यवहार करने लगता है इससे मुद्रा में अनेक दोष उत्पन्न हो जाते हैं अब हम मुद्रा के दोषों को पढ़ेंगे सबसे पहला दोष है आर्थिक दोष
(क) आर्थिक दोष (Economic Defects) ---मुद्रा में अनेक आर्थिक दोष पाये जाते हैं
(१) मुद्रा के मूल्य की अस्थिरता (Instability in value of money)---- मुद्रा का पहला दोष यह  है कि इसका मूल्य कालपर्यन्त स्थिर रहता है जब मुदा का मूल्य गिरता है तो उसका मतलब होता है कीमतों का गिरना अथवा अवस्फीति मुद्रा की पूर्ति बढ़ने या घटने से ये परिवर्तन होते है यदि मुद्रा के मूल्य में बहुत अधिक परिवर्तन हो जाए तो वे हानिकारक सिद्ध होते हैं और यहां तक की मुद्रा के मूल्य में मामूली परिवर्तन भी अलाभदायक ह़ोते है
समर्पित तथा आय का असमान वितरण ( Unequal Distribution of wealth and Income)---- मुद्रा के मूल्य में परिवर्तन के परिणाम स्वरूप सम्पति और आय के वितरण में असमानता उत्पन्न हो जाती है एक ही वर्ग के व्यक्तियों में भी आय तथा सम्पति का बहुत अधिक और प्राय मनमाना पुनर्वितरण हुआ है
(३)चक्रीय  उतार-चढ़ाव (Cyclical fiuctuations )---जब मुद्रा की पूर्ति बढ़ती है तो तेजी आती है और जब मुदा की पूर्ति घटती है तो मन्दी घटती है तेजी के दौरान उत्पादन रोजगार और आय बढ़ते हैं जिससे अति उत्पादन होता है दूसरी ओर मंदी के दौरान उत्पादन रोजगार और आय घटते हैं
(४) काला धन ( Black money)__ अधिक मुद्रा काले को बढ़ाया देती है अधिक मुद्रा पर सरकार को कम देना पसंन्द करते हैं ऐसे लोग धर्म के नाम पर पूजा स्थल जगह बनवाते हैं काले धन के बदले लोगों को और ज्यादा धन संचय करने को प्रोत्साहन मिल जाता है इस प्रकार अधिक मुद्रा ही समाज में काले धन का प्रमुख कारण है
(५) समाज में वर्ग संघर्ष (Class struggle in society) यदि समाज में अमीरों का प्रभुत्व बढ़ जायेगा तब ऐसी स्थिति में जमाखोरी महंगाई गरीबी  बेरोजगारी और भूखमरी बढ़ जायेगी समाज में मुद्रा की धनी वर्ग की तरह पकड़ वर्ग संघर्ष का कारण बनती है अधिक मुद्रा की लालसा धनी वर्ग को निर्धन वर्ग पर शोषण करने को उत्साहित करती है
(६) पूंजीकरण की समस्या (Problem of capitalization )---- अधिक मुद्रा समाज के औद्योगिक क्षेत्र में लगी होती है जहां लाभ कमाना ही प्रमुख उद्देश्य लेकिन वस्तु के गुणात्मक स्तर की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है इसे घटिया किस्म की वस्तुएं अधिक मात्रा में बनती हैं इस प्रकार अति उत्पादन की समस्या उत्पन्न हो जाती हैं इसका उत्पादकों पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि वस्तुओं की माल सूचियों मैं विधि प्रारंभ हो जाती हैं विनिवेश कम कर देते हैं जिससे अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ता है और अनंत तो हो मंदी की ओर अग्रसर होती हैं
परंतु इसका यह मतलब नहीं कि फिर से हम वस्तु विनिमय युग में चले जाएं और मुद्रा का प्रयोग छोड़ दें वास्तव में मुद्रा के दोष तभी  उत्पन्न होते हैं जब मुद्रा का अनियंत्रण ढंग से प्रयोग किया जाता है जैसा कि प्रोफेसर रॉबर्टसन ने लिखा है मुद्रा मानव जाति के लिए अनेक वारदानों का स्रोत है तथापि यदि इसे नियंत्रित ना रखा जाए तो यह  अभिशाप और मुसीबत की जड़ बन जाती है


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