पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में मुद्रा का कार्यभार

पूंजीवादी अर्थव्यवस्था वह  अर्थव्यवस्था होती हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति उपभोक्ता उत्पादक तथा संसाधनों के स्वामी के रूप में पर्याप्त आर्थिक स्वतंत्रता के साथ आर्थिक क्रियाओं में संलग्न रहता है व्यक्तिगत आर्थिक क्रियाओं को निजी संपत्ति की संस्था लाभों का उद्देश्य उधम की स्वतंत्रता और उपभोक्ता प्रभुत्व नियंत्रित करते हैं सभी उत्पादन के साधनों पर निजी स्वामित्व होता है और उनका प्रबंधन ऐसे व्यक्ति करते हैं जिन्हें प्रवर्तमान कानूनों के अनुसार उत्पादन के साधनों को ठिकाने लगाने की स्वतंत्रता होती है व्यक्तियों को यह छूट होती हैं कि वे चाहे जो व्यवसाय चुने और चाहे जितनी वस्तुएं तथा सेवाएं खरीदें और बेचे

इस तरह की अर्थव्यवस्था निश्चय ही मुद्रा अर्व्यथवस्था होती है जहां अर्थव्यवस्था के संचालन में मुद्रा महत्वपूर्ण कार्य करती हैं उपभोक्ताओं तथा उत्पादकों को आय  की प्राप्ति मुद्रा में होती है उपभोक्ताओं के पास श्रम भूमि और पूंजी यह उत्पादन के साधन होते हैं इनकी सेवाएं बेचने से उन्हें मजदूरी किराया ब्याज और लाभांश के रूप में मुद्रा आय प्राप्त होती है वे अपनी मुद्रा आय को उन वस्तुओं तथा सेवाओं पर खर्च कर सकते हैं जिन्हें बीवी खरीदना चाहते हैं वह चाहे तो अपनी मुद्रा का कुछ भाग खर्च करें और कुछ बचा ले
फिर बड़ी और छोटी फर्मे वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए उत्पादन के साधनों की सेवाएं खरीदती हैं यह सेवाएं मुद्रा के हिसाब से खरीदी जाती हैं पूंजीवादी अर्थव्यवस्था में लाभो का उद्देश्य ही समस्त उत्पाद प्रक्रिया को निर्धारित करता है परिव्यय और प्राप्तियों का अंतर  ही  लाभ होता है फर्मे विविध प्रकार की वस्तुओं को और उत्पादन में उपभोक्ताओं की सेवाएं के बदले उन्हें मुद्रा में भुगतान करती है


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