मुद्रा का कार्य भाग एवं मुद्रा अर्थव्यवस्था पर अपने प्रभाव को कैसे तटस्थ करती है
इस विचार में हम पहले क्लासिकी सिद्धांत को समझगे मुद्रा अर्थव्यवस्था पर अपने प्रभाव मैं तटस्थ हैं यह मौद्रिक शक्तियां अर्थव्यवस्था में वास्तविक आय उत्पादन और रोजगार को प्रभावित नहीं करती हैं दूसरी ओर केंन्जीय सिद्धांत मुद्रा को अर्थव्यवस्था में मुख्य कार्य प्रदान करता है इसके अनुसार मुद्रा की पूर्ति में परिवर्तन ब्याज दर के परिवर्तनों द्वारा आय उत्पादन और रोजगार के स्तर को प्रभावित करती हैं
से का बाजार नियम क्लासिकल सिद्धांत का मर्म है जो यह बताता है कि पूर्ति स्वय अपनी मांग पैदा कर लेती हैं इसका अभिप्राय है कि उत्पादन में वृद्धि आय मैं सामान विधि का प्रजनन करेगी जो साधन स्वामियों को लगान मजदूरी ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होगी यही आगे व्यय को बढ़ाते हैं जिस से उत्पादित वस्तुओं के लिए मांग बढ़ती है इस प्रकार साधन स्वामियों द्वारा अर्जित समस्त आय उन वस्तुओं के क्रय में खर्च हो जाती हैं जिनके उत्पादन में वे सहायक होते हैं ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में सामान्य अति उत्पादन तथा बेरोजगारी बेरोजगार नहीं हो सकते अत आय और रोजगार सदैव रोजगार स्तर को निर्धारित करते हैं दोनों ही वास्तविक मजदूरी दर के फलन हैं श्रम के पूर्ति और मांग वक्रो का कटाव बिंदु संतुलन मजदूरी दर तथा पूर्ण रोजगार का स्तर निर्धारित करता है
आय और रोजगार का मुद्रा मजदूरी पर बेरोजगारी मजदूरी ढांचे में निर्धनता के कारण केवल मुद्रा मजदूरी को कम करके ही पूर्ण रोजगार प्राप्त किया जा सकता है मुद्रा मजदूरी और वास्तविक मजदूरी में सीधा और समानुपातिक संबंध होता है जब मुद्रा मजदूरी में कमी हो तो वास्तविक मजदूरी भी उसी अनुपात में कम हो जाते हैं जिससे बेरोजगारी घट जाती हैं और अनंत तो अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति आ जाती हैं यह संबंध इस मान्यता पर आधारित है की कीमतें मुद्रा की मात्रा के समानुपातिक होते हैं यह तर्क एक पूर्ण प्रतियोगी अर्थव्यवस्था में मजदूरी में कमी से उत्पादन लागत कम हो जाते हैं तथा वस्तुओं की कीमतें गिर जाते हैं जिससे आगे वस्तुओं की मांग बढ़ जाती हैं बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अधिक श्रमिकों को काम पर लगाया जाता है ताकि वह और वस्तुओं को उत्पादित करें जब रोजगार में वृद्धि होती हैं तो कुल उत्पादन भी बढ़ता है जब तक कि पूर्ण रोजगार स्तर नहीं प्राप्त होता अतः पूजी का स्टाक प्रौद्योगिकी और संसाधन दिए होने पर कुल उत्पादन तथा रोजगार के स्तर में एक
से का बाजार नियम क्लासिकल सिद्धांत का मर्म है जो यह बताता है कि पूर्ति स्वय अपनी मांग पैदा कर लेती हैं इसका अभिप्राय है कि उत्पादन में वृद्धि आय मैं सामान विधि का प्रजनन करेगी जो साधन स्वामियों को लगान मजदूरी ब्याज तथा लाभ के रूप में प्राप्त होगी यही आगे व्यय को बढ़ाते हैं जिस से उत्पादित वस्तुओं के लिए मांग बढ़ती है इस प्रकार साधन स्वामियों द्वारा अर्जित समस्त आय उन वस्तुओं के क्रय में खर्च हो जाती हैं जिनके उत्पादन में वे सहायक होते हैं ऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था में सामान्य अति उत्पादन तथा बेरोजगारी बेरोजगार नहीं हो सकते अत आय और रोजगार सदैव रोजगार स्तर को निर्धारित करते हैं दोनों ही वास्तविक मजदूरी दर के फलन हैं श्रम के पूर्ति और मांग वक्रो का कटाव बिंदु संतुलन मजदूरी दर तथा पूर्ण रोजगार का स्तर निर्धारित करता है
आय और रोजगार का मुद्रा मजदूरी पर बेरोजगारी मजदूरी ढांचे में निर्धनता के कारण केवल मुद्रा मजदूरी को कम करके ही पूर्ण रोजगार प्राप्त किया जा सकता है मुद्रा मजदूरी और वास्तविक मजदूरी में सीधा और समानुपातिक संबंध होता है जब मुद्रा मजदूरी में कमी हो तो वास्तविक मजदूरी भी उसी अनुपात में कम हो जाते हैं जिससे बेरोजगारी घट जाती हैं और अनंत तो अर्थव्यवस्था में पूर्ण रोजगार की स्थिति आ जाती हैं यह संबंध इस मान्यता पर आधारित है की कीमतें मुद्रा की मात्रा के समानुपातिक होते हैं यह तर्क एक पूर्ण प्रतियोगी अर्थव्यवस्था में मजदूरी में कमी से उत्पादन लागत कम हो जाते हैं तथा वस्तुओं की कीमतें गिर जाते हैं जिससे आगे वस्तुओं की मांग बढ़ जाती हैं बढ़ी हुई मांग को पूरा करने के लिए अधिक श्रमिकों को काम पर लगाया जाता है ताकि वह और वस्तुओं को उत्पादित करें जब रोजगार में वृद्धि होती हैं तो कुल उत्पादन भी बढ़ता है जब तक कि पूर्ण रोजगार स्तर नहीं प्राप्त होता अतः पूजी का स्टाक प्रौद्योगिकी और संसाधन दिए होने पर कुल उत्पादन तथा रोजगार के स्तर में एक
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