परम्परागत मुद्रा परिणाम सिद्धांत की तुलना में केन्जीय सिद्धांत की श्रेष्ठता
मुद्रा के परिणाम सिद्धांत के परम्परागत सिद्धांत की तुलना में केन्ज का मुद्रा एवं कीमत सिद्धांत अधिक श्रेष्ठ है
- परम्परागत दृष्टिकोण के मुकाबले केन्ज का मुद्रा परिणाम का पुन व्यवस्थापित सिद्धांत इसलिए श्रेष्ठ है कि वह इस पुराने मत का खण्डन करता है कि मुद्रा के परिणाम तथा कीमतों के बीच प्रत्यक्ष संबंध एवं समानुपातिक सम्बन्ध होता है इसकी बजाय वह मुद्रा के परिणाम तथा कीमतों के बीच अप्रत्यक्ष एव अनुपातिक सम्बन्ध करता है
- इसमें कीमतों के विशुद्ध मुद्रा सिद्धांत की बजाय उत्पादन एवं रोजगार का मुद्रा सिद्धांत प्रस्तुत किया इसके निमित्त उसने मुद्रा सिद्धांत को मूल्य सिद्धांत में एकीकृत किया उसने मुद्रा सिद्धांत को मूल्य सिद्धांत में और साथ ही मुद्रा सिद्धांत को ब्याज की दर के माध्यम से उत्पादन एवं रोजगार सिद्धांत में भी एकीकृत किया है वस्तुत मुद्रा सिद्धांत तथा मूल्य सिद्धांत का एकीकरण उत्पादन के सिद्धांत के माध्यम से किया है और उत्पादन सिद्धांत में व्याज की दर गिर जाती है जो निवेश की मात्रा और समस्त मांग को बढ़ा देती है जिसके परिणामस्वरूप उत्पादन तथा रोजगार बढ़ते हैं इस तरीके से मुद्रा सिद्धांत को उत्पादन एवं रोजगार के सिद्धांत में एकीकृत किया गया है जब उत्पादन और रोजगार बढ़ते हैं तो उत्पादन के साधनों की मांग को और बढ़ा देते हैं
- इस प्रकार कीमतें बढ़ाने लगती है इस तरीके से मुद्रा सिद्धांत को मूल्य सिद्धांत में एकीकृत किया गया है अतः परम्परागत मुद्रा के परिणाम सिद्धांत की अपेक्षा केन्जीय सिद्धांत श्रेष्ठ है क्योंकि यह अर्व्यथवस्था के वास्तविक तथा मौद्रिक क्षेत्रो को ऐसे दो अलग कक्षो में बन्द नहीं करता है जिनके बीच मूल्य के सिद्धांत और मुद्रा एवं कीमतों के सिद्धांत में कोई दरवाजे या खिड़कियां नहीं है
- फिर परम्परागत परिणाम सिद्धांत संसाधनों के पूर्ण रोजगार की अयाथार्थिक मान्यता पर आधारित है इस मान्यता के अन्र्तगत मुद्रा के परिणाम में दी हुई वृद्धि के परिणामस्वरूप कीमत स्तर में हमेशा समानुपातिक वृद्धि होती है दूसरी ओर केन्ज मानता है कि पूर्ण रोजगार की स्थिति केवल अपवाद होती है इसीलिए जब तक बेरोजगारी रहेगी तब तक जिस अनुपात में मुद्रा का परिणाम परिवर्तित होगा उसी अनुपात में उत्पादन एवं रोजगार परिवर्तित होंगे परन्तु कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं होगा और जब पूर्ण रोजगार होगा तो जिस अनुपात में मुद्रा परिणाम बदलेगा उसी अनुपात में कीमतें बदलेगी इस प्रकार परम्परागत विश्लेषण के मुकाबले केन्जीय विश्लेषण अधिक उत्कृष्ट है क्योंकि यह बेरोजगारी तथा पूर्ण रोजगार दोनों स्थितियों में मुद्रा के परिणाम और कीमतों के सम्बंध का अध्ययन करता है
- जब तक बेरोजगारी रहती है तब तक कीमतो में बहुत धीरे धीरे वृद्धि होती है और स्फिति का कोई खतरा नहीं होता है मुद्रा के परिणाम में होने वाली प्रत्येक वृद्धि के साथ कीमतों में होने वाली वृद्धि केवल तभी स्फीतिकारी होती है जब अर्थव्यवस्था पूर्ण रोजगार का स्तर उपलब्ध कर लेती है इस प्रकार केन्ज के दृष्टिकोण की खूबी इस बात पर बल देना है कि हो सकता है कि पूर्ण रोजगार तथा कीमत स्थिरता के उद्देश्य में स्वाभाविक समाधान न किया जा सके
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