आय नीति (Incomes policy )
आवश्यकता (Need)==दूसरे विश्व युद्ध के बाद स्पीति को रोकने के लिए उन्नत देशों में जो प्रयत्न हुए उनके परिणाम स्वरूप आय नीति का आविर्भाव हुआ मौद्रिक तथा राजकोषीय नीतिया स्फीति कारी दबाव को घटा तो सकती है पर श्रम शक्ति में बेरोजगारी बढ़ाकर ही वह ऐसा कर सकती है यह नीतियां उस प्रभाव पर ध्यान देने में असमर्थ है
जो वर्तमान आर्थिक ढांचे और संस्थाएं मांगाधिकय स्पीति और लागताधिकय स्फीति पर डालती है उदाहरणार्थ स्फीति कारी दबाव में मालिक और मजदूर यूनियन है योग देती है मांगा निकर स्पीति का कारण तो यह है की मालिक मजदूरी बढ़ा दे और लागत आदि के स्पीति का कारण यह हो सकता है कि मजदूर यूनियन मजदूरी को ऊपर की ओर धिका दे
इन दोनों साधनों के सहयोग से भी अर्थव्यवस्था में मांग बहुत बढ़ सकती हैं प्रजातंत्र प्रजातंत्र देशों मैं इन संगठनों को समाप्त नहीं किया जा सकता यहां तक कि यदि इन संगठनों के विशेष रूप से मजदूर यूनियन के संगठनात्मक ढांचे को बदलने के प्रयत्न किए जाएंगे तो वह प्रक्रिया बहुत धीमी होगी और ऐसी गंभीर राजनैतिक तथा सामाजिक समस्याएं खड़ी कर दे शक्ति है तो स्पीति को रोकने की वजाए बढ़ा भी सकते हैं इसीलिए आय नीति का समर्थन करते हैं जोकि उतनी ही प्रभावी समझी जाती है जितना की संस्थाओं अथवा उनके ढांचों को बदलना
वर्तमान अर्थव्यवस्थाओं में अपूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती हैं जिस कारण मजदूरीया और कीमतें ट्रेड यूनियनों एवं फर्मों द्वारा एकाधिकारत्मक रीतियों से निर्धारित की जाती हैं ऐसे हालात में आय नीति द्वारा ही मजदूरी दरे और कीमतें नियंत्रित करना श्रेयस्कर होता है
जो वर्तमान आर्थिक ढांचे और संस्थाएं मांगाधिकय स्पीति और लागताधिकय स्फीति पर डालती है उदाहरणार्थ स्फीति कारी दबाव में मालिक और मजदूर यूनियन है योग देती है मांगा निकर स्पीति का कारण तो यह है की मालिक मजदूरी बढ़ा दे और लागत आदि के स्पीति का कारण यह हो सकता है कि मजदूर यूनियन मजदूरी को ऊपर की ओर धिका दे
इन दोनों साधनों के सहयोग से भी अर्थव्यवस्था में मांग बहुत बढ़ सकती हैं प्रजातंत्र प्रजातंत्र देशों मैं इन संगठनों को समाप्त नहीं किया जा सकता यहां तक कि यदि इन संगठनों के विशेष रूप से मजदूर यूनियन के संगठनात्मक ढांचे को बदलने के प्रयत्न किए जाएंगे तो वह प्रक्रिया बहुत धीमी होगी और ऐसी गंभीर राजनैतिक तथा सामाजिक समस्याएं खड़ी कर दे शक्ति है तो स्पीति को रोकने की वजाए बढ़ा भी सकते हैं इसीलिए आय नीति का समर्थन करते हैं जोकि उतनी ही प्रभावी समझी जाती है जितना की संस्थाओं अथवा उनके ढांचों को बदलना
वर्तमान अर्थव्यवस्थाओं में अपूर्ण प्रतियोगिता पाई जाती हैं जिस कारण मजदूरीया और कीमतें ट्रेड यूनियनों एवं फर्मों द्वारा एकाधिकारत्मक रीतियों से निर्धारित की जाती हैं ऐसे हालात में आय नीति द्वारा ही मजदूरी दरे और कीमतें नियंत्रित करना श्रेयस्कर होता है
Thanks
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