आय तथा रोजगार का प्रतिष्ठित सिद्धांत (Classical theory of income

क्लासिक अर्थशास्त्र का केहना था कि अर्थव्यवस्था में हमेशा पूर्ण रोजगार की स्थित बनी  रहती है उनका यह विचार से के नियम से प्रभावित था उनका मानना था कि यदि किसी देश में बेरोजगारी की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तो ऐसी आर्थिक शक्तिया अपने आप कार्य करने लग जाएगी जिससे फिर से पूर्ण रोजगार की स्थित स्थापित हो जाएगी

 वर्ष १९२९-३३के दौरान पूंजीवादी देशों में बड़ी मंदी की स्थिति आई जिससे उनमें व्यापक रुप से बेरोजगारी फैल गई  सकल घरेलू उत्पाद तथा राष्ट्रीय आय का स्तर गिर गया जिसके कारण उत्पादन घट गया कल कारखाने बंद हो गए तथा प्रति व्यक्ति निम्न आय के कारण जनता को विपत्तियों तथा कष्ट का सामना करना पड़ा अतः विद्वानों का प्रतिष्ठित आर्थिक सिद्धांत से विश्वास उठ गया है

रोजगार का क्लासिक सिद्धांत ( Classical theory of employment---- क्लासिक विचारधारा का यह मानना था कि पूंजीवादी अर्थव्यवस्था के बिना पूर्ण रोजगार की प्राप्ति नहीं हो सकती है मजदूरी कीमत लोचशीलता दी हुई होने पर आर्थिक प्रणाली में स्वत शक्तिया पाईं जाति है जो पूर्ण रोजगार कायम रखने की प्रविति रखति है उसी स्तर पर उत्पादन भी होता अतः पूर्ण रोजगार की स्थित एक सामान नहीं रहती है इस स्तर से विचलन की स्थिति असामान्य रह जाता है जो अपने आप पूर्ण रोजगार की ओर अग्रसर होती चली जाती है

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