रेपो दर Repo Rate

 रेपो दर  -  - - वहां ब्याज दर जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा व्यवसायिक बैंकों को लघु कालीन ऋण उपलब्ध कराया जाता है उसे रपोदर कहते हैं इसमें परिवर्तन का प्रभाव व्यवसायिक बैंकों द्वारा आवंटित ऋणों पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ता है मुख्य रूप से इसका प्रयोग तात्कालिक मुद्रा के प्रसार में  कमी या वृद्धि करने के लिए किया जाता है

रिवर्स रेपो दर - - - वह ब्याज दर जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक व्यावसायिक बैंकों से लिए गए लघु कालीन ऋणों पर ब्याज देता है उसे रिवर्स रेपो दर कहते हैं वास्तव में व्यवसायिक बैंक अपने बचे हुए अतिरेक को भारतीय रिजर्व बैंक के पास जमा कर देते हैं ताकि उन्हें कुछ दिनों के लिए कुछ ब्याज प्राप्त हो जाए इसीलिए इसे धन की पार्किंग भी कहा जाता है


  सावधिक तरलता अनुपात - - -  भारत में कार्य करने वाले सभी अनुसूचित बैंक  देसी विदेशी की सकल   जमाओ का   वह अनुपात है जिसे उन्हें अपने पास आरक्षित रखना होता है इसकी मुख्य भूमिका बैंकिंग व्यवस्था की कुल साख को वाणिज्य क्षेत्र के मध्य विभाजित करना है इसमें कमी जहां एक और सरकार के रिजर्व बैंक से प्राप्त उधार पर प्रभाव डालती है वहीं दूसरी ओर सरकार को रिजर्व बैंक की सरकारी प्रतिभूतियों को खुले बाजार में  विक्रय  करने या रिजर्व बैंक से प्रतिभूतियां के प्रत्यय भूत संसाधन प्राप्त करने की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाते हैं इसका निर्धारण भारती रिजर्व बैंक द्वारा किया जाता है जो 25 से 40  प्रतिशत के बीच होता है परंतु वर्ष 2007 से इसकी न्यूनतम सीमा को समाप्त कर दिया गया है इसका मुख्य उद्देश्य बाजार में मुद्रा के प्रसार को नियंत्रित करना होता है इसके अधिक होने से बाजार में मुद्रा का  प्रसार कम होता है तथा कम होने से मुद्रा का  प्रसार अधिक होता है वर्तमान में यह 23  प्रतिशत है




नगद आरक्षण अनुपात - नगर आरक्षण अनुपात अनुसूचित बैंकों की  सकल जमाव का वह अनुपात होता है जिसे उन्हें भारती रिजर्व बैंक के पास नकद रूप में रखना पड़ता है इसको भारतीय रिजर्व बैंक 15% के मध्य सुनिश्चित कर सकता है वर्ष 2007  से इसके निचले स्तर को समाप्त कर दिया गया है तथा अब    यह अनुपात जीरो 15% के  बीच है सीआरआर में वृद्धि से  मुद्रा की पूर्ति में कमी आती है  तथा कमी से मुद्रा के  प्रसार में वृद्धि होती है  अभी तक हमने   परिमाणात्मक  साख नियंत्रण  की विधियां  की व्याख्या करें  अब हम  गुणात्मक तथा  चयनात्मक साख नियंत्रण  की व्याख्या करेंगे

गुणात्मक या चयनात्मक  साख नियंत्रण  -  चयनात्मक साख नियंत्रण  वे तरीके हैं जो साख की मात्रा या  परिमाण  को नहीं बल्कि उसके  प्रवाह को अधिक प्रभावपूर्ण ढंग से नियंत्रित करते हैं इसका प्रमुख उद्देश्य व्यापारिक बैंकों द्वारा अवांछित आर्थिक क्रियाओं के लिए साख देने पर    रोक लगाना या उन्हें हतोत्साहित करना है

रिजर्व बैंक प्रमुख रूप से तीन  चयनात्मक विधियों का प्रयोग करता है

  1. कुछ विशिष्ट प्रतिभूतियों की आड में ऋण देने के संबंध में न्यूनतम सीमा एवं मार्जिन निर्धारित करना
  2. कुछ विशेष उद्देश्यों के लिए दिए गए ऋण आया सुविधाओं की ऊपरी सीमा निर्धारित करना
  3. कुछ विशेष प्रकार के ऋणों पर विभेद आत्मक ब्याज दर लगाना
यदि आपको कुछ समझने में परेशानी हो या और अच्छे से समझना चाहते हो तो मुझे कमेंट करके बताइए आप प्लीज

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