बैंक दर bank rate policy

बैंक दर उस दर को कहा जाता है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा  व्यवसायिक बैंकों को दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराया जाता है बैंक दर मैं परिवर्तन का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से  व्यवसायिक बैंकों द्वारा आवंटित ऋणों की ब्याज दर पर पड़ता है

दूसरे शब्दों में समझते हैं बैंक दर वह दर होती है जिस पर केंद्रीय बैंक विनिमय बिल तथा व्यापारियों  हुंडिया का पुनर बट्टा करता है परंतु भारत में बैंक दर नीति का प्रयोग व्यापारिक बैंकों को भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा   श्रेष्ठ हुंडियो का आधार देने तक ही सीमित है  श्रेष्ठ    हूंडियों में  सरकारी प्रतिभूतियों एवं प्रामाणिक  व्यापारिक बिल शामिल होते हैं नवंबर 1970 से जारी की गई  बिल पुनर बट्टा स्कीम के अंतर्गत सभी लाइसेंस प्राप्त  व्यापारिक बैंक वस्तुओं के विक्रय  या भेजने से उत्पन्न प्रमाणिक व्यापारिक  विलो का  पुनर बट्टा भारती  रिजर्व बैंक के साथ कर सकते हैं  बैंक दर नीति का उद्देश्य साख की पर्याप्तता  तथा लागत को प्रभावित  करना है  रिजर्व बैंक की  स्थापना से लेकर  14 नवंबर 1951  तक बैंक दर  3% स्थित  रखी गई  यह सस्ती मुद्रा नीति थी  जिससे साख का असीमित प्रसार हुआ  परिणाम स्वरूप  देश में सट्टा क्रियाओं को  प्रोत्साहन मिला और  भुगतान शेष के  घाटे में वृद्धि हुई  पहली बार नवंबर 1951 को बैंक दर 3.5 प्रतिशत की गई फिर मई 1957 मैं इसे बढ़ाकर 4% जनवरी 1963 मैं 4.5 प्रतिशत सितंबर 1 इस प्रकार यह घटती बढ़ती रहे इससे स्पष्ट होता है कि बैंक दर 1973 तक  मौद्रिक नीति का एक महत्वपूर्ण यंत्र प्रयोग नहीं किया गया था 1980 और 90 के दशक में  महंगी अथवा सस्ती  मौद्रिक के रूप में इसका सही प्रयोग किया गया है अगर आपको कहीं पर समझ ना आया हो तो आप मुझे कमेंट करके बताइए जरूर

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