उपभोग फलन के सिद्धांत theories of the consumption function
- केंज ने अपनेGenral theory नामक पुस्तक में कहां है समस्त उपभोग वस्तुतः समस्त चालू प्रयोज्य आय का फलन है उपभोग तथा आय मैं संबंध उसके उपभोग के मनोवैज्ञानिक नियम पर आधारित है जो कि कहता है कि जब आय बढ़ती है तो उपभोग व्यय भी बढ़ता है परंतु अपेक्षाकृत कम मात्रा में अब हम उपभोग फलन के कुछ महत्वपूर्ण सिद्धांतों का विश्लेषण करेंगे
- निरपेक्ष आय परिकल्पनाthe absolute Income hypothesis - केंज के उपभोग आय संबंध को निरपेक्ष आय परिकल्पना नाम दिया गया है जो यह बताता है कि जब आय बढ़ती है तो उपभोग भी बढ़ता है परंतु वह आय में वृद्धि की अपेक्षा कम बढ़ता है इसका मतलब है कि उपभोग तथा आय का संबंध आनुपातिक है
समाज में इस तरह के कारणों ने उपभोग फलन को ऊपर की ओर लगभग उतना ही सरकाया है जितना की दीर्घकालीन में उपभोक्ता तथा आय के बीच समानुपाती संबंध स्थापित करने के लिए आवश्यक है और इस प्रकार उसे ऐसा प्रतीत होने से रोका है केवल आय के आधार पर प्रत्याशी अनुपातिक संबंध प्रतीत होता है
2- सापेक्ष आय परिकल्पना the relative income hypothesis जेम्स डूसेनबरी की सापेक्ष आय परिकल्पना केंज के उपभोग सिद्धांत की दो आधारभूत मान्यताओं के निराकरण पर आधारित हैं डूसेनबरी का कहना है कि प्रत्येक व्यक्ति का उपयोग व्यवहार स्वतंत्र नहीं होता अपितु प्रत्येक अन्य व्यक्ति के व्यवहार पर निर्भर होता है दूसरा कि उपभोग संबंध कालांतर में अपरिवर्तनीय होते हैं और परिवर्तनीय नहीं होते
उनका मानना है कि यदि हम उपभोक्ता व्यवहार की समस्या को वास्तव में समझना चाहते हैं तो हमें प्रारंभ में उपभोग ढांचे की सामाजिक प्रकृति को मान्यता देनी होगी उपभोक्ता ढांचो की सामाजिक प्रकृति से उसका तात्पर्य है कि मानवों की प्रवृत्ति केवल अपने धनी पड़ोसियों के स्तर तक पहुंचने की ही नहीं अपितु उनसे आगे भी बढ़ जाने की होती है
डूसेनबरी के सिद्धांत का दूसरा भाग है - आय की गत चोटी past peak of income परिकल्पना जो उपभोग फलन में अल्पकालीन उतार-चढ़ाव की व्याख्या करते हैं और केंज कि इस मान्यता का खंडन करती है उपभोग संबंध परिवर्तनीय है इस परिकल्पना की स्थापना है कि समृद्धि की अवधि के दौरान उपभोग बढ़ेगा और धीरे-धीरे अपने आप को अधिक ऊंचे स्तर पर समायोजित कर लेगा जब एक बार लोग आय के एक विशेष उच्चतम स्तर पर पहुंच जाते हैं और इस जीवन स्तर के आदी हो जाते हैं तो मंदी के दौरान भी वे अपने उपभोग ढांचे को छोड़ने को तैयार नहीं होते
स्थायी आय परिकल्पना the permanent income hypothesis समानुपाती दीर्घकालीन तथा अनुपातिक अल्पकालीन उपभोग फलन के बीच प्रत्यक्ष विरोध का एक और समाधान फ्रीडमैन ने अपनी स्थायी आय परिकल्पना के माध्यम से प्रस्तुत किया फ्रीडमैन ने इस मत को स्वीकार किया कि चालू आय उपभोग व्यय को निर्धारित करती है और इसके स्थान पर उसने यह माना है की उपभोगता था व्यय दोनों के ही दो-दो भाग होते हैं स्थायी आय अस्थायी आय जिससे कि
y =yp +yt .c=cp+ct
अपने धन को ज्यों का त्यों सुरक्षित रखते हुए कोई उपभोक्ता इकाई आय जैसे मात्रा का उपभोग कर सकती है उस आय को स्थायी आय कहते हैं
- जीवन चक्र परिकल्पना the life cycle hypothesis-- एंडो तथा मोदिग्ल्यानी ने ऐसे उपभोग फलन का निर्माण किया जिसे जीवन चक्र सिद्धांत का नाम दिया गया इस सिद्धांत के अनुसार उपभोग किसी उपभोक्ता की जीवन काल में प्रत्याशित आय फलन है व्यक्तिगत उपभोक्ता का इस बात पर निर्भर करता है कि उसके उपलब्ध संसाधन क्या है पूंजी पर प्रतिफल की दर क्या है उसकी व्यय करने की योजना क्या है वह योजना किस उम्र में बनाई गई है उसकी आय अथवा साधनों के वर्तमान मूल्य में परिसंपत्तियों अथवा संपत्ति से प्राप्त आय तथा चालू एवं प्रत्याशित श्रम आय से प्राप्त आय सम्मिलित रहती है
- उपभोक्ता के जीवन काल में कीमत स्तर में कोई परिवर्तन नहीं होता
- ब्याज दर स्थिर रहती है
- उपभोक्ता को विरासत में कोई परी संपत्तियां प्राप्त नहीं होती है और उसकी निबल परिसंपत्तिया उसकी अपनी ही बचतो का परिणाम होते हैं
Sahi hai joshi ji
ReplyDeleteRight theories sir
ReplyDeleteC=a+bY/d
Deleteउपभोग फलन के बारे में डिटेल्स करके बताएं
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