किंज का उपभोग का मनोवैज्ञानिक नियम keynes' s psychological law of consumption
केंज ने उपभोग के आधारभूत मनोवैज्ञानिक नियम की स्थापना की है जो कि उपभोग फलन का आधार है उन्होंने कहा कि आधारभूत मनोवैज्ञानिक नियम जिस पर हम मानव स्वभाव के संबंध में अपने ज्ञान तथा अनुभव के विस्तृत तथ्यों के आधार पर बहुत अधिक विश्वास के साथ निर्भर रहने के अधिकारी हैं कि नियम के अनुसार सामान्य तौर से लोग इस बात के इच्छुक होते हैं कि जब उनकी आज बड़े तो वह अपना उपभोग बढ़ाएं परंतु उतना नहीं जितना की उनकी आय में वृद्धि होती है इस नियम का अभिप्राय है की लोगों की प्रवृत्ति यह रहती है की वह उपभोग पर आय में पूर्ण विधि की अपेक्षा कम व्यय करें इस नियम की तीन प्रस्थापनाएं जिनको हम एक एक करके विस्तृत व्याख्या करेंगे
- जब आय बढ़ती है तो उपभोग व्यय भी बढ़ता है परंतु आय वृद्धि से अपेक्षाकृत थोड़ी मात्रा में बढ़ता है इसका कारण यह है कि जैसे-जैसे आय में वृद्धि होती है वैसे वैसे हमारी आवश्यकता है पूरी होती जाती हैं जिससे उपभोक्ता वस्तुओं पर और अधिक व्यय करने की जरूरत नहीं रहती इसका यह मतलब नहीं की आय में वृद्धि होने पर उपभोग व्यय बढ़ जाता है वास्तव में आय में वृद्धि होने पर उपभोग व्यय बढ़ता जाता है परंतु अपेक्षाकृत कम अनुपात में
- आय में हुई वृद्धि उपभोग व्यय तथा बचत के बीच किसी ना किसी अनुपात में विभक्त हो जाती हैं यह निष्कर्ष ऊपर दी गई स्थापना से प्राप्त होता है कि क्योंकि आय में हुए समस्त वृद्धि उपभोग में नहीं गए होते और उसका शेष भाग बचत में चला जाता है इस प्रकार उपभोग तथा बचत साथ साथ चलते हैं
- आय में वृद्धि होने से उपभोग तथा बचत दोनों में वृद्धि होती है इसका मतलब है यह है कि बढ़ी हुई आय में से उपभोग तथा बचत में पहले की अपेक्षा कमी होने की संभावना नहीं है ऊपर दी गई प्रों स्थापना पर आधारित है क्योंकि जब आय बढ़ती है तो उपभोग भी बढ़ता है परंतु पहले की अपेक्षा कम मात्रा में जिसके परिणाम स्वरूप बचत में वृद्धि होती हैं इस प्रकार आय में वृद्धि होने पर उपभोग तथा बचत दोनों बढ़ जाते हैं
Sahi kunchha ho joshi jayu
ReplyDeleteBhot badiya
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