बाजार संतुलन अधिमाँग अधिपति
एक व्यक्तिगत फर्म तक आपूर्ति वक्र हमें एक वस्तु की उस मात्रा को बताता है जिसे कि एक लाभ अधिकतम करने वाली फर्म विभिन्न कीमतों पर बेचने को इच्छुक होगी जब की कीमत दी हुई है तथा बाजार पूर्ति वक्र हमें विभिन्न कीमतों पर किसी वस्तु की उस मात्रा को बताती है जिसे सभी फार्म सम्मिलित रूप से पूर्ति करने की इच्छुक होगी जबकि प्रत्येक फार्म के लिए कीमत दी हुई है
हम उपभोक्ता तथा फर्मो फर्म क्या होता है पहले इसको समझते हैं तब आपको आसानी से समझ में आ जाएगा जैसे आप की एक दुकान वह आपकी फर्म कह लाएगी जैसे आप किसी काम को करने में कुशल है आपके पास कौशल है तो आप अपने उस कौशल को बाजार में लाएंगे बाजार में काम करने के लिए आपको एक स्थान की जरूरत होगी जहां पर आप काम करेंगे दुकान होगी यह आपकी फर्म कह लाएगी छोटी-छोटी फर्मों को मिलाकर उद्योगों का निर्माण होता है तो दोस्तों यह हो गए हमारी फर्म अब देखेंगे वह समझेंगे एक फर्म बाजार में किस तरीके से काम करती है इस विषय में हम यह समझने का प्रयास करेंगे फर्म और उपभोक्ता दोनों बाजार में होंगे उन दोनों के व्यवहार को हम सम्मिलित करके मांग व पूर्ति विश्लेषण द्वारा बाजार संतुलन कैसा होगा तथा किस कीमत पर संतुलन होगा इस सब का अध्ययन करेंगे और आशा करेंगे कि आपको यह समझ में आए दोस्तों समझ में आता है तो कमेंट जरूर कीजिएगा तो समझाते हैं कि इन दोनों के बीच का संतुलन
इसमें हम संतुलन पर मांग तथा पूर्ति में शिफ्ट इधर से उधर के प्रभाव का भी परीक्षण करेंगे अतः हम मांग और पूर्ति विश्लेषण को अनुप्रयोगों को भी समझेंगे
एक पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में स्वहित के उद्देश्य से कार्य करने वाले क्रेता तथा विक्रेता होते हैं यहां पर प्रतिस्पर्धा से मतलब है बराबरी या यूं कहें की वह स्थिति जहां पर दो या दो से अधिक व्यक्ति किसी कार्य को कर रहे हो वह दोनों व्यक्ति एक दूसरे से आगे निकलने के लिए प्रयत्न शील रहते हैं या संघर्ष करते रहते हैं इसके काम से मेरा काम अच्छा चले इसके लिए संघर्ष करते रहते हैं जहां ऐसी स्थिति होती है उसे प्रतिस्पर्धी कहा जाता है प्रतिस्पर्धी बाजार में उपभोक्ता का उद्देश्य अपने अपने अभिमान को अधिकतम करना तथा फलों का उद्देश्य अपने अपने लाबो को अधिकतम करना संतुलन की अवस्था मैं उपभोक्ता तथा फर्म दोनों के उद्देश्य संगत होते हैं
संतुलन को एक ऐसी स्थिति के रूप में व्याख्या की जाती है कि जहां पर बाजार के सभी उपभोक्ताओं तथा फर्मों की योजनाएं सुमेलित हो जाती हैं और बाजार रिक्त हो जाता है संतुलन की स्थिति में जिस कुल मात्रा का विक्रय करने की सभी फर्मे इच्छुक है वह उस मात्रा के बराबर होता है जिसे बाजार के सभी उपभोक्ता खरीदने के इच्छुक हैं बाजार पूर्ति बाजार मांग के बराबर होती है ऐसी स्थिति में बाजार रिक्त हो जाता है और ना ही फर्म और ना ही उपभोक्ता विचलित होना चाहते हैं जिस कीमत पर संतुलन स्थापित होता है उसे संतुलन कीमत कहते हैं इस कीमत पर खरीदी तथा बेची गई मात्रा संतुलन मात्रा कहलाती है अतःp q एक संतुलन है
यदि Pd (p)=qs (p)
जहां p संतुलन कीमत को तथाqd (p) औरqs (p) p कीमत पर क्रमश वस्तुओं के बराबर मांग तथा बाजार पूर्ति को दर्शाते हैं
यदि किसी कीमत पर बाजार पूर्ति बाजार मांग से अधिक है तो उस कीमत पर बाजार में अधिपूति कहलाती है तथा यदि उस कीमत पर बाजार मांग पूर्ति से अधिक है तो उस कीमत पर बाजार में अधिमांग कहलाती हैं अतः पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में संतुलन को वैकल्पिक रूप में शून्य अधिमांग अधि पूर्ति स्थिति के रूप में व्याख्या किया जा सकता है जब कभी बाजार पूर्ति बाजार मांग के समान नहीं हो और इसीलिए बाजार में संतुलन नहीं हो तो कीमत में परिवर्तन की प्रवृत्ति होगी
संतुलन से ब्राह्म व्यवहार-- एडम स्मिथ के समय 1723 1790 से यह मान्यता रही है जब भी बाजार में असंतुलन होता है तो पूर्ण प्रतिस्पर्धी बाजार में एक अदृश्य हाथ कीमतों में परिवर्तन कर देता है हमारी अंतर्दृष्टि भी यह कहती है कि अदृश्य हाथ आधिमांग की स्थिति में कीमतों में वृद्धि तथा अधिपूर्ति की स्थिति में कीमतों में कमी करेगा संपूर्ण विश्लेषण में हमारी यह मान्यता रहेगी कि इस अदृश्य हाथ की एक महत्वपूर्ण भूमिका है इसके अतिरिक्त हम यह भी मानेंगे कि इस प्रक्रिया के द्वारा अदृश्य हाथ संतुलन स्थापित करता है
nice
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