कींस के उपयोग संबंधी मनोवैज्ञानिक नियमKeynes 's psychological law of consumption
उपभोग प्रवृत्ति के संबंध में की गई उपरोक्त चर्चा में कीस के उपभोग संबंधी नियम को आसानी से समझा जा सकता है इसे मनोवैज्ञानिक नियम या उपभोग संबंधी आधारभूत नियम भी कहते हैं जब किसी देश की समस्त आय बढ़ती है तो उसका उपभोग भी बढ़ जाता है परंतु आय में हुई वृद्धि से कुछ मात्रा में कम रह जाता है यह एक साधारण सी बात है कि जब किसी की आय बढ़ जाती है तो वह इस वृद्धि से कुछ तो अपनी पुरानी आवश्यकताओं से पहले से अधिक संतुष्ट हो जाता है कुछ नवीन आवश्यकताओं को पूरा करने में भी व्यय करता है और कुछ बचा लेता है मनुष्य का बचत करना भी आवश्यक है यह बचत उसकी विपत्ति के समय काम आती है इसके अतिरिक्त उसे पूजी के रूप में लगातार वह अपनी आय को बढ़ा सकता है
अतः कींस के नियम का सारांश यह है कि जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग व्यय भी सामान्य से अधिक बढ़ जाता है किंतु उतना नहीं जितना की आय में वृद्धि होती है दूसरे तरीके से हम इसे समझेंगे यह नियम बताता है कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति इकाई से कम होती है उपयोग संबंधी कींस के इस नियम को निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है
0<MPC <1
नियम की प्रस्थापनाएं- आय में हुई वृद्धि उपभोग व्यय तथा बचत के बीच किसी ना किसी अनुपात में विभक्त हो जाती हैं यह ऊपर की प्रस्तावना से प्राप्त है क्योंकि आय में हुई समस्त वृद्धि उपभोग पर नहीं खर्च होती उसका शेष भाग बचत में चला जाता है इस प्रकार उपयोग तथा बचत साथ साथ चलते हैं
आय में वृद्धि होने से उपभोक्ता बचत दोनों में वृद्धि होती है इसका मतलब यह है बड़ी आई से उपभोग अथवा बचत में पहले की अपेक्षा कमी होने की संभावना नहीं यह ऊपर की प्र गई प्रस्तावनाओं पर आधारित है क्योंकि जब आय बढ़ती है तो उपभोग भी बढ़ता है किंतु पहले की अपेक्षा कम मात्रा में परिणाम स्वरूप बचत में वृद्धि होती है इस प्रकार आय में वृद्धि होने पर उपभोग तथा बचत दोनों बढ़ जाते हैं
अतः कींस के नियम का सारांश यह है कि जब आय में वृद्धि होती है तो उपभोग व्यय भी सामान्य से अधिक बढ़ जाता है किंतु उतना नहीं जितना की आय में वृद्धि होती है दूसरे तरीके से हम इसे समझेंगे यह नियम बताता है कि सीमांत उपभोग प्रवृत्ति इकाई से कम होती है उपयोग संबंधी कींस के इस नियम को निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है
0<MPC <1
नियम की प्रस्थापनाएं- आय में हुई वृद्धि उपभोग व्यय तथा बचत के बीच किसी ना किसी अनुपात में विभक्त हो जाती हैं यह ऊपर की प्रस्तावना से प्राप्त है क्योंकि आय में हुई समस्त वृद्धि उपभोग पर नहीं खर्च होती उसका शेष भाग बचत में चला जाता है इस प्रकार उपयोग तथा बचत साथ साथ चलते हैं
आय में वृद्धि होने से उपभोक्ता बचत दोनों में वृद्धि होती है इसका मतलब यह है बड़ी आई से उपभोग अथवा बचत में पहले की अपेक्षा कमी होने की संभावना नहीं यह ऊपर की प्र गई प्रस्तावनाओं पर आधारित है क्योंकि जब आय बढ़ती है तो उपभोग भी बढ़ता है किंतु पहले की अपेक्षा कम मात्रा में परिणाम स्वरूप बचत में वृद्धि होती है इस प्रकार आय में वृद्धि होने पर उपभोग तथा बचत दोनों बढ़ जाते हैं
nice
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