पूंजी की सीमांत उत्पादकता

 पूंजी की सीमांत उत्पादकता पूंजी परिसंपत्ति की एक अतिरिक्त इकाई से प्रत्याशित इसकी लागत के ऊपर प्रतिफल की उच्चतम दर है कुरी हारा के शब्दों में यह अतिरिक्त पूंजी वस्तुओं की संभावित प्राप्ति और उनकी पूर्ति कीमत के बीच का अनुपात है संभावित प्राप्ति वाई किसी परिसंपत्ति के जीवन काल के दौरान इससे प्राप्त कुल कुल शुद्ध प्रतिफल है जब की पूर्ति मूल्य भीभाई पर संपत्ति को सुरक्षित करने की लागत है

पूंजी की सीमांत उत्पादकता निवेश के आवश्यक निशचायको में से एक है निवेश तथा पूजी की सीमांत उत्पादकता के बीच उलटा सम्बन्ध है जब निवेश बढ़ता है तो पूजी की सीमांत उत्पादकता घट जाती है और जब निवेश घटता है तो पूजी की सीमांत उत्पादकता बढ जाती है परन्तु यह सम्बन्ध अल्पविकसित देशों पर नहीं लागू होता है
    
   इस प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में निवेश का स्तर नीचा होता है और पूंजी की सीमांत उत्पादकता भी कम होती है इस विरोधाभास के कारण पूजी तथा अन्य साधनों का अभाव मार्किट का छोटा आकार कम आय कम मांग ऊंची लागते अविकसित पूंजी तथा मुद्रा मार्केट अनिश्चितता इत्यादि। पूंजी की सीमांत उत्पादकता तथा निवेश को ये सब साधन नीचे स्तर पर रखते हैं


कींस पूंजी परिसंपत्ति कि संभावित प्राप्ति को उसकी पूर्ति कीमत के साथ संबंध करता है पूंजी की सीमांत उत्पादकता बट्टा दर के बराबर होगी जो पूंजी परिसंपत्ति के जीवन काल के दौरान उससे प्राप्त प्रत्याशी प्रति फलों द्वारा दी गई वार्षिकी यों की श्रृंखलाओं के वर्तमान मूल्य को उसकी परिसंपत्ति की पूर्ति कीमत के बिल्कुल बराबर है

पूंजी निवेश करते समय यह ध्यान रखा जाता है कि भविष्य में कितना प्रतिशत प्रतिफल प्राप्त होगा प्रत्याशित  आय का अनुमान लगाते समय शुद्ध आय मैं कुल व्यय को घटाकर प्राप्त होता है

पूंजी की सीमांत उत्पादकता को प्रतिशत में लेते हैं और यह किसी पूजी परिसंपत्ति पर दिए हुए निश्चित निवेश से प्रत्याशित लाभ की प्रतिशतता होती है उदाहरण 2 वर्ष मान लिया जाता है जबकि प्रथम वर्ष में प्रत्याशित आय 550 और द्वितीय वर्ष में 605 रुपए आय प्राप्त होने की आशा है और पूंजी की सीमांत उत्पादकता 10% है

sp  =R1/ (1+i) + R2/(1+i)2
1000रू=  550/(1.10)+ 605/(1.10)
 1000रू=500+500
इस प्रकार R1/(1+i) पूंजी परिसंपत्ति का वर्तमान मूल्य है यह ब्याज दर पर निर्भर करता है जिस पर बट्टा किया जाता है
एक अर्थव्यवस्था काMEC वक्र  दर्शाता है इस  ऋणात्मक ढलान बाएं से दाएं नीचे की ओर है जो यह व्यक्त करती है कि ऊंची एम ई सी पर कम पूंजी स्टॉक होता है जब पूजी स्टॉक बढ़ता है तो एम ई सी गिरती है ऐसा उत्पादन में घटते प्रतिफल का नियम लागू होने से होता है जिससे पूंजी की सीमांत उत्पादकता कम होती है
आय उत्पादन एवं रोजगार का पूर्ण मांडल अब चित्र द्वारा व्यक्त किया गया हैA B C चार भाग है जो व्याज दर  MEC और निवेश में सम्बन्ध है मुद्रा की कुल मांग क्षैतिज अक्ष परM से मापी गई है भाग(A) में लेनदेन और सतर्कता मांगOY1 AND OY2आय स्तरो पर L1 द्वारा दिखाई गया है भाग  B में L1 वक्र मुद्रा की सट्टा मांग को ब्याज दर का फलन प्रकट करता है  व्याज दर के  OR1 पर गिरने से मुद्रा की सट्टा मांग बढ़ करMM1 हो जाती है भाग C निवेश को व्याज दर एवंMEC का फलन दिखाता है

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