उत्पादन एवं लागत सिद्धांत(production and cost theory
 उत्पादन फलन( production function) भूमि श्रम puji आदि किसी वस्तु के उत्पादन में एक अनिवार्य साधन या उत्पादन होते हैं तथा वस्तुओं के उत्पादन की मात्रा इन्हीं साधनों की मात्रा पर निर्भर करती है अर्थशास्त्र के अंतर्गत उत्पादन फलन साधनों तथा उत्पादन के अंत संबंध को कहते हैं गणितीय भाषा में उत्पादन फलन को व्यक्त किया जा सकता है
       q=f (a .b.c.d..........)1 
उपरोक्त में q वस्तु की उत्पादन मात्रा को व्यक्त करता है
a.b.c.d आदि क्रमशः साधन A .B.C. और D की मात्रा को दर्शाते हैं
उपरोक्त फलन का अर्थ यह होता है कि किसी वस्तु की उत्पादन मात्रा साधना की मात्राa.b. c.d. पर आधारित होती हैं जैसे यदि साधनों की मात्रा में वृद्धि हो जाए तो वस्तु अधिक मात्रा मैं उत्पादित होती है परंतु यदि साधन कम मात्रा में हो तो वस्तु उत्पादन भी कब हो जाएगा वस्तु की उत्पादन मात्र वस्तु की प्रकृति तथा उनके साधनों पर आधारित होती हैं इसी प्रकार साधनों या उपादानो का वस्तु की उत्पादन मात्रा से संबंध वस्तु की प्रकृति के अनुसार होता है
 उदाहरण स्वरुप जहां कृषि उत्पादन में भूमि अधिक मात्रा में आवश्यक होती है वहां घड़ी बनाने में कुशल श्रम(skilled labour ) ही मुख्य साधन होता है
यदि कोई फर्म अपने वस्तु की उत्पादन मात्रा में वृद्धि करना चाहती है तो वह दो प्रकार से ऐसा कर सकती है एक प्रणाली तो यह है कि वह फर्म सभी आवश्यक साधनों की मात्रा में वृद्धि कर दे तथा दूसरा यह है कि वह उन साधनों की मात्रा में वृद्धि कर दे तथा शेष की मात्रा को स्थिर रखें उदाहरण के तौर पर यदि कोई कृषक अपना उत्पादन बढ़ाना चाहता है तो भूमि बीज उर्वरक सिंचाई आदि सभी साधनों में वृद्धि कर दे या भूमि उसके पास पहले जितनी रहे पर वह खाद सिंचाई आदि का अधिक मात्रा में प्रयोग करें

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