सामान्य हिंदी सभी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए

 राजा लक्ष्मण सिंह ने 1861 में आगरा से प्रजा हितैषी नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया इन्होंने संस्कृत गर्वित शुद्ध हिंदी का प्रचार प्रसार किया
 1817 ईसवी में कोलकाता बुक सोसाइटी और 1833 ईसवी के लगभग आगरा स्कूल बुक सोसाइटी की स्थापना हुई इससे विभिन्न विषयों की पुस्तकों का प्रकाशन हुआ
भारतेंदु को आधुनिकता का प्रवर्तक साहित्यकार माना जाता है इन्होंने हिंदी के विभिन्न विधाओं में साहित्य सृजन किया सन 1850 से 1900 तक अवधि को भारतेंदु युग कहते हैं
 भारतेंदु ने राजा शिवप्रसाद सितारे हिंद की अरबी फारसी प्रधान हिंदी और राजा लक्ष्मण सिंह की संस्कृत निष्ठ हिंदी के बीच का मार्ग निकाला हिंदी खड़ी बोली के विकास में भारतेंदु जी का योगदान हरिश्चंद्र मैगजीन हरिश्चंद्र चंद्रिका और बालाबोधिनी पत्रिकाओं के निबंधों में दृष्टव्य है
भारतेंदु मंडल के रचनाकारों का मूल स्वर नवजागरण है इसके प्रमुख रचनाकार भारतेंदु हरिश्चंद्र प्रताप नारायण मिश्र बद्रीनारायण चौधरी प्रेमघन बालकृष्ण भट्ट अंबिकादत्त व्यास राधाचरण गोस्वामी ठाकुर जगमोहन सिंह लाला श्री निवास दास सुधाकर द्विवेदी राधा कृष्णा आदि
हिंदी के विकास में काशी नागरी प्रचारिणी सभा और इंडियन प्रेस का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण है
नागरी प्रचारिणी सभा की प्रेरणा से इंडियन प्रेस प्रयाग द्वारा जून उन्नीस सौ में सरस्वती पत्रिका का प्रकाशन आरंभ हुआ इसके प्रथम संपादक चिंतामणि घोष थे
पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी 1903 ईसवी में सरस्वती पत्रिका के संपादन नियुक्त हुए सरस्वती पत्रिका को बीसवीं शताब्दी के आरंभिक चरणों का विश्वकोश कहा गया है
पंडित महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरल और शुद्ध भाषा के प्रयोग पर विशेष बल दिया लेखकों कवियों की रचनाओं की वर्तनी और व्याकरण संबंधी त्रुटियों को स्वयं सुशोभित कर देते थे और उन्हें शुद्ध लिखने हेतु प्रेरित करते थे
द्विवेदी युग के प्रमुख

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